20 अक्टूबर 2025

कश्मीरी मुस्लिम कुम्हार जो दीवाली के लिए मिट्टी के दीये बनाते हैं

 

श्रीनगर के निशात क्षेत्र में स्थित एक मुस्लिम कुम्हार परिवार, उमर कुम्हार और उनके पिता अब्दुल सलाम कुम्हार, दीवाली के लिए मिट्टी के दीये बनाते हैं। 2023 में, उन्होंने 20,000 दीयों का ऑर्डर पूरा किया, जिनकी कीमत प्रति दीया ₹10 थी, जिससे उन्हें लगभग ₹2,00,000 की आय हुई। इन दीयों की मांग जम्मू, हिमाचल प्रदेश और कश्मीर घाटी के विभिन्न हिस्सों से थी।

अब्दुल सलाम कुम्हार ने बताया कि दीवाली उनके परिवार के लिए खुशी और एकता का पर्व है। वे अपने बनाए गए दीयों के माध्यम से विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच प्रेम और भाईचारे

17 अक्टूबर 2025

गोकुलपुरा की संगमरमर कला: हिंदू-मुस्लिम कारीगरों की अनमोल विरासत

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1890 में आगरा के संगमरमर कारीगर
 
 
गोकुलपुरा, आगरा, संगमरमर की नक्काशी और पित्रा दुरा (पत्थर जड़ाई) की कला के लिए विश्व विख्यात है। यहाँ के कलाकार हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों से आते हैं, जो सदियों से मिल-जुलकर इस कला को जीवित रख रहे हैं। यह सामूहिक विरासत गोकुलपुरा की खास पहचान है।

संगमरमर की नक्काशी में माहिर हिंदू कलाकार परिवार

श्री जगन्नाथ कुम्भकार परिवार और चौहान परिवार जैसे हिंदू कारीगर परिवार अपनी पारंपरिक नक्काशी और पत्थर जड़ाई के लिए प्रसिद्ध हैं। ये परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी कला को सहेजते और नवाचार करते आए हैं। इनकी कारीगरी में राजपूत और स्थानीय शैलियों का प्रभाव दिखता है।

 मुघल स्थापत्य कला की नक्काशी में माहिर मुस्लिम कलाकार 

गोकुलपुरा में मुस्लिम कारीगरों का भी विशेष योगदान रहा है। जैसे:श्री मोहम्मद इब्राहिम खान परिवार: यह परिवार ताजमहल जैसी मुघल स्थापत्य कला की नक्काशी में माहिर है। इनके काम में मुघल और फारसी नक्काशी की झलक मिलती है।

अब्दुल सत्तार खान: एक जाने-माने मुस्लिम कारीगर, जिन्होंने पारंपरिक संगमरमर की नक्काशी के साथ आधुनिक डिजाइनों को भी अपनाया और कला को नई दिशा दी।

 सांस्कृतिक मेल और सहयोग

हिंदू और मुस्लिम कारीगर आपसी सम्मान और सहयोग से काम करते हैं। दोनों समुदायों

12 अक्टूबर 2025

आगरा की सूर सरोवर बर्ड सैंक्चुअरी का होगा बड़ा विस्तार, प्राकृतिक धरोहर को मिलेगा नया संरक्षण

 

आगरा की प्राकृतिक सुंदरता और पर्यावरण संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया जा रहा है। सूर सरोवर बर्ड सैंक्चुअरी, जो यमुना एक्सप्रेसवे के करीब स्थित है और पक्षियों का एक महत्वपूर्ण आवास स्थल है, अब और भी बड़ा होने वाला है। उत्तर प्रदेश सरकार ने इसे लगभग 800 हेक्टेयर तक विस्तार देने का प्रस्ताव नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) को सौंपा है। इस योजना का मकसद न सिर्फ पक्षियों के लिए सुरक्षित आवास बढ़ाना है बल्कि आगरा और आसपास के इलाकों के पर्यावरण को भी संतुलित रखना है।

अभी सूर सरोवर की सीमा करीब 380 हेक्टेयर के आसपास है, जिसे अब इसके नजदीकी सुरदास रिजर्व फॉरेस्ट ब्लॉक से जोड़कर लगभग दोगुना किया जाएगा। साथ ही, लगभग 14.5 हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि को भी इस क्षेत्र में शामिल करने की योजना है। सरकार ने यह लक्ष्य रखा है कि यह विस्तार 2026 के पहले पांच महीनों के भीतर पूरा कर लिया जाए। इस विस्तार के साथ इस क्षेत्र को एक इको-सेंसिटिव ज़ोन घोषित करने की प्रक्रिया भी तेज कर दी गई है, जिससे पर्यावरणीय संरक्षण को मजबूती मिलेगी।

आगरा में पर्यटक स्थल के रूप में उभरता सूर सरोवर

सूर सरोवर बर्ड सैंक्चुअरी आगरा के लिए सिर्फ एक पक्षी आवास स्थल नहीं, बल्कि शहर की सांसों जैसा है। यहां हजारों प्रवासी और स्थानीय पक्षी हर साल आते हैं, जिनमें पेंटेड स्टॉर्क, ग्रे हरॉन और कई दुर्लभ प्रजातियां शामिल हैं। इस सैंक्चुअरी का विस्तार आगरा के लिए पर्यटन के लिहाज से भी महत्वपूर्ण साबित होगा। जब यह क्षेत्र बड़ा होगा, तो पर्यटकों के लिए नए अवसर पैदा होंगे, साथ ही स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के रास्ते भी खुलेंगे। ग्रामीण क्षेत्रों के युवा इको-गाइड, पक्षी दर्शन ट्रेनर और स्थानीय दुकानदार के रूप में रोजगार पा सकेंगे।

स्थानीय लोगों में इस योजना को लेकर उत्साह है। खेरिया मोड़ इलाके के ग्रामीण प्रधान राजेश सिंह ने कहा कि पहले यह इलाका साफ-सफाई और पर्यावरण के लिहाज से ठीक नहीं था, लेकिन अब इस सैंक्चुअरी के विस्तार से पूरे इलाके की हवा साफ होगी और बच्चों को प्रकृति के करीब जाने का मौका मिलेगा। वहीं पर्यावरण कार्यकर्ता रेखा चौधरी ने सरकार

6 अक्टूबर 2025

होलीपुरा की हवेलियाँ: परंपरा, प्यार और समय की छाँव में बसा एक सफर

 

Holipura गाँव, आगरा की प्राचीन हवेलियाँ
आगरा जिले के होलीपुरा गाँव की जड़ें मुगल काल से जुड़ी हैं और इसका इतिहास काफी समृद्ध रहा है। 16वीं और 17वीं सदी में जब आगरा मुगलों की राजधानी था, तब होलीपुरा एक छोटा लेकिन महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र था। उस दौर में यहाँ की राहों से गुजरती थीं मुगल सेनाएं और व्यापारी, जिनके चलते इस गाँव का विकास हुआ।

गाँव की सबसे खास पहचान यहाँ की पुरानी हवेलियाँ हैं, जो आज भी कई हिस्सों में अपनी शान और भव्यता के साथ खड़ी हैं। ये हवेलियाँ पारंपरिक बुजुर्ग वास्तुकला की मिसाल हैं, जिनमें कारीगरों ने नक्काशी, फ्रेस्को पेंटिंग्स और जटिल लकड़ी के काम को बड़ी खूबसूरती से उकेरा है।

 पुरानी हवेलियाँ कहती हैं अपनी जज़्बातों की दास्तान – होलीपुरा गाँव

अकसर ये हवेलियाँ बड़े परिवारों के लिए बनी होती थीं, जिनमें कई कमरे, आंगन और छतों पर खूबसूरत छज्जे होते थे। इनमें से कई हवेलियों की दीवारों पर अब भी पुराने जमाने की कहानियाँ और ऐतिहासिक चित्र बने हुए हैं। गाँव के बुजुर्ग बताते हैं कि इन हवेलियों में कभी अमीर ज़मींदार और व्यापारियों का निवास हुआ करता था।हालांकि समय के साथ कई हवेलियाँ खंडित हो गई हैं या उनकी स्थिति ख़राब हो चुकी है, फिर भी गाँव में ऐसे कई घर आज भी हैं जो अपने इतिहास को संजोए हुए हैं। ये पुरानी हवेलियाँ न केवल वास्तुकला की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि गाँव की सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रतीक हैं।

आज के दौर में होलीपुरा तेजी से बदल रहा है, लेकिन गाँव के लोग अपनी इन विरासतों को बचाने के लिए प्रयासरत हैं। स्थानीय प्रशासन और पुरातत्व विभाग मिलकर इन ऐतिहासिक हवेलियों

26 सितंबर 2025

आगरा विकास की दौड़ में क्यों पीछे रह गया, जबकि मेरठ तेजी से आगे बढ़ रहा है?

 क्या आगरा फिर से उत्तर प्रदेश का विकास प्रमुख शहर बन सकता है?

( STPI  सेंटर मेरठ )
आगरा, जो कभी उत्तर भारत का गौरव और ऐतिहासिक पहचान था, आज विकास की दौड़ में कई शहरों से पिछड़ता जा रहा है। खासकर मेरठ, जो कुछ साल पहले तक आगरा की तुलना में छोटा औद्योगिक शहर माना जाता था, अब दिल्ली एनसीआर से जुड़ने वाली कई बड़ी परियोजनाओं के कारण तेजी से विकसित हो रहा है। मेरठ में दिल्ली-मेरठ रैपिड रेल, ग्रीनफील्ड एक्सप्रेसवे, खेल विश्वविद्यालय, औद्योगिक कॉरिडोर और स्मार्ट सिटी जैसी योजनाएं लागू हो रही हैं, जिससे यहां रोजगार के नए अवसर बन रहे हैं और निवेशकों का भी आकर्षण बढ़ रहा है। वहीं आगरा में कई महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट जैसे मेट्रो, इनर रिंग रोड और स्मार्ट सिटी योजना वर्षों से अधूरे पड़े हैं। इसका असर सीधे शहर की आर्थिक प्रगति पर पड़ा है।

आगरा की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से पर्यटन पर निर्भर है, लेकिन यहां कोई नया आर्थिक मॉडल विकसित नहीं हो पाया है। इसके अलावा बड़े उद्योग और आधुनिक शिक्षा संस्थान भी शहर में स्थापित नहीं हो पाए हैं, जिससे युवाओं का पलायन बढ़ रहा है। आगरा के विकास में राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी, अधूरी परियोजनाएं और निवेश की कमी प्रमुख बाधाएं बनी हुई हैं। दूसरी तरफ, मेरठ ने बेहतर कनेक्टिविटी और इंफ्रास्ट्रक्चर का फायदा उठाकर तेजी से अपना औद्योगिक और शैक्षिक आधार मजबूत किया है।

फिर भी आगरा के पास कई संभावनाएं मौजूद हैं। विश्वप्रसिद्ध ताजमहल जैसी पर्यटन संपदा, चमड़ा और हस्तशिल्प उद्योग, अच्छी भौगोलिक स्थिति, और युवा आबादी यहां के सबसे बड़े फायदे हैं। बस जरूरत है एक स्पष्ट रोडमैप, प्रभावी नीति, स्थानीय नेतृत्व की जवाबदेही और सरकारी प्राथमिकता की। यदि ये सब संभव हो सके तो आगरा भी एक बार फिर से विकास की दौड़ में तेजी से आगे निकल सकता है। फिलहाल सवाल ये है कि क्या आगरा के लोग और उनकी सरकार इस चुनौती को समझेंगे और अपने शहर को मेरठ जैसे तेजी से विकसित होते शहर के स्तर तक पहुंचाएंगे या इतिहास और पर्यटन के भरोसे पीछे रह जाएंगे।


23 सितंबर 2025

ताजमहल का पहला विदेशी पर्यटक: जब फ्रांसीसी यात्री टैवर्नियर पहुँचे आगरा

ताजमहल का पहला विदेशी पर्यटक टैवर्नियर कौन था?



टैवर्नियर:ताजमहल का पहला विदेशी पर्यटक,सन् 1665

ताजमहल आज दुनिया भर में मोहब्बत की सबसे खूबसूरत निशानी के रूप में जाना जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसे देखने वाला पहला विदेशी पर्यटक कौन था? इतिहास के अनुसार, ताजमहल का पहला दर्ज किया गया विदेशी दर्शक था जीन बैप्टिस्ट टैवर्नियर, जो कि फ्रांस का एक प्रसिद्ध व्यापारी और यात्री था।

सन् 1665 के आसपास टैवर्नियर भारत आया और मुगलकालीन शहरों की यात्रा के दौरान आगरा पहुँचा। ताजमहल को उस समय बने हुए ज्यादा समय नहीं हुआ था — शाहजहाँ ने इसे अपनी बेगम मुमताज़ महल की याद में बनवाया था और इसका निर्माण 1653 में पूरा हुआ था। टैवर्नियर ताजमहल की सुंदरता से इस कदर प्रभावित हुआ कि उसने अपने यात्रा वृतांत में इसका विस्तार से वर्णन किया।

उसने लिखा कि यह एक सफेद संगमरमर का भव्य मकबरा है, जो दिन के अलग-अलग समय में अलग रंगों में चमकता है। उसकी नजर में ताजमहल सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि कला और भावनाओं का संगम था। टैवर्नियर की पुस्तकों और यात्रा-विवरणों के ज़रिए यूरोप को पहली बार ताजमहल की झलक मिली, जिससे इसकी ख्याति धीरे-धीरे पूरी दुनिया में फैल गई।

इस प्रकार टैवर्नियर सिर्फ एक पर्यटक नहीं था, बल्कि उसने भारत की सांस्कृतिक धरोहर को वैश्विक मंच पर पहुँचाने में अहम भूमिका निभाई।