20 नवंबर 2025

केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा, हिंदी की विश्व पहचान

 

भारत में हिंदी भाषा केवल एक संचार का माध्यम नहीं बल्कि हमारी सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान का अहम हिस्सा है। विदेशी छात्र और गैर-हिंदी भाषी लोग आज हिंदी सीखने के लिए विभिन्न विकल्प खोजते हैं और इस दिशा में केंद्रीय हिंदी संस्थान ने अपनी अलग पहचान बनाई है। यह संस्थान हिंदी भाषा को दुनिया भर में फैलाने और विदेशी छात्रों के लिए इसे आसान और रोचक बनाने के लिए काम कर रहा  है।

केंद्रीय हिंदी संस्थान का उद्देश्य और महत्व

केंद्रीय हिंदी संस्थान का उद्देश्य हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार और इसके वैज्ञानिक अध्ययन को बढ़ावा देना है। यह संस्थान विदेशी छात्रों और गैर-हिंदी भाषियों को हिंदी सिखाने के लिए विशेष कोर्स और प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित करता है। संस्थान का यह प्रयास छात्रों को भाषा सीखने के साथ-साथ भारतीय संस्कृति, परंपरा और साहित्य से भी परिचित कराता है।

संस्थान में छात्रों को हिंदी बोलने, पढ़ने और लिखने की दक्षता बढ़ाने पर विशेष ध्यान दिया जाता है। छात्रों के लिए भाषा सीखना केवल एक अकादमिक प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह उनके लिए भारत की सांस्कृतिक धरोहर को समझने और अनुभव करने का एक माध्यम भी बन जाता है।

विदेशी छात्रों और गैर-हिंदी भाषियों के लिए हिंदी शिक्षा

केंद्रीय हिंदी संस्थान विदेशी छात्रों के लिए हिंदी को सरल और प्रभावी तरीके से प्रस्तुत करता है। संस्थान में छात्रों को भाषा के मूल नियम, व्याकरण, उच्चारण और साहित्यिक अध्ययन की शिक्षा दी जाती है। इसके अलावा, छात्रों को हिंदी लोककथाओं, कहानियों, कविताओं और आधुनिक

17 नवंबर 2025

तथ्य ही इतिहास का आधार, उनका निर्माण नहीं किया जा सकता : प्रो इरफान हबीब

 

अलीगढ़/आगरा: प्रख्यात इतिहासकार प्रोफ़ेसर इरफान  हबीब का कहना है कि इतिहास केवल साक्ष्यों और स्थापित तथ्यों पर खड़ा होता है। किसी भी प्रकार की अनावश्यक छेड़छाड़ न केवल इतिहास की विश्वसनीयता को नुकसान पहुँचाती है, बल्कि समाज के सभी वर्गों में असहजता भी पैदा करती है। अलीगढ़ स्थित अपने निवास पर सिविल सोसायटी ऑफ आगरा के प्रतिनिधियों से चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि सत्ता संस्थान अक्सर तथ्यों को अपने अनुकूल ढालने की कोशिश करते रहे हैं। स्थानों के नाम बदलने की बढ़ती प्रवृत्ति भी उसी सोच का हिस्सा है, जो पहले भी थी लेकिन आज अधिक तेज़ी से दिखाई देती है।

इतिहास में तथ्यों की विश्वसनीयता का संकट

प्रो. हबीब ने कहा कि हाल के समय में स्थापित साक्ष्यों को नज़रअंदाज़ कर भारतीय इतिहास की नई व्याख्या गढ़ने का चलन बढ़ा है। उनका स्पष्ट कहना था कि इतिहासकार का काम तथ्यों का निर्माण करना नहीं, बल्कि उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर उन्हें स्थापित करना है। उन्होंने याद दिलाया कि अतीत में केंद्र सरकार की नीतियों में भी इतिहास को अपने तरीके से ढालने के प्रयास हुए थे। उन्होंने उस दौर का भी उल्लेख किया जब तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री ने एक पुस्तक के विमोचन में कहा था कि यह किताब “हबीब एंड कंपनी” के इतिहास का खंडन करती है, जो उनके अनुसार इतिहास को राजनीतिक व्याख्या के अनुसार मोड़ने की प्रवृत्ति का उदाहरण था।

प्रो. हबीब ने कहा कि जिन लोगों को इतिहास की समझ है, उनके आलोचनात्मक सुझावों का हमेशा स्वागत होना चाहिए, लेकिन कम जानकारी और कल्पित तथ्यों के आधार पर इतिहास में हस्तक्षेप किसी भी स्थिति में स्वीकार्य नहीं है।

पुरातात्विक धरोहरों का संरक्षण और बढ़ती उपेक्षा

उन्होंने अलीगढ़ की पुरातात्विक धरोहरों का उल्लेख करते हुए कहा कि मराठा शासन और रियासत कालीन कई संरचनाएँ अब ख़राब स्थिति में हैं, कुछ तो विलुप्त भी हो चुकी हैं। कभी पुरातत्व विभाग की टीमें नियमित सर्वेक्षण के लिए आती थीं, लेकिन अब यह सिलसिला लगभग समाप्त हो गया है। शहर में मुख्य रूप से केवल किले का कुछ हिस्सा और गेट ही बचा है, जिसे संरक्षित किया जा सकता है।

आगरा को उन्होंने विरासत की दृष्टि से देश के सबसे महत्वपूर्ण शहरों में बताया। यहाँ न केवल पुरा-संपदा है, बल्कि अभिलेखागार, प्रशासनिक दस्तावेज, दरबारी वृतांत और संग्रहित विवरण भी असाधारण महत्व रखते हैं। मुगल काल और उसके बाद शासन करने वाली कई राजसत्ताओं के रिकॉर्ड आगरा से संबद्ध रहे हैं, और यही कारण है कि इन दस्तावेजों का संरक्षण अत्यंत आवश्यक है। कम प्रसिद्ध स्मारकों और पुरावशेषों के प्रति जागरूकता बनाए रखना समय की आवश्यकता है। उन्होंने 'Monumental Antiquities of North Western Provinces' पुस्तक का भी ज़िक्र किया, जिसमें सौ साल पहले के पुरातात्विक स्थलों का अत्यंत सटीक विवरण दर्ज है और जो आज भी शोधकर्ताओं के लिए उपयोगी है।

फतेहपुर सीकरी से संबंधित तेरह मोरी बाँध पर चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि यह बाँध वास्तु और तकनीकी दृष्टि से विशेष महत्व रखता है। सिविल सोसायटी ऑफ आगरा के प्रयासों के बाद एएसआई ने इसे फतेहपुर सीकरी का अभिन्न हिस्सा माना है और इसे कार्यशील बनाने के लिए सिंचाई विभाग को कार्यवाही की अनुमति दी है। इस विषय पर उनका शोध “Chāh ba Chāh: The Technique of Water-lifting at Fatehpur Sikri” के नाम से प्रकाशित है।

इतिहास शोध में भाषा, स्रोत और नए अध्ययन की चुनौतियाँ

प्रो. हबीब ने कहा कि भारत के एक बड़े भूभाग में अंग्रेज़ी के आगमन से पहले तक प्रशासन की भाषा **फारसी** थी। आज फारसी जानने वालों की कमी के कारण कई पुराने दस्तावेज़ अनुवाद और विश्लेषण के बिना ही पड़े रह जाते हैं, जिससे इतिहास शोध में नई चुनौतियाँ खड़ी हो गई हैं। जयपुर और आमेर के राजाओं के मुगल दरबार से पत्राचार का अधिकांश हिस्सा फारसी में है, जिसे समझना अब कठिन होता जा रहा है।

ब्रज क्षेत्र पर अपने व्यापक शोध का उल्लेख करते हुए उन्होंने अपनी पुस्तक “मुगल काल में ब्रज भूमि: राज्य, किसान और गोसाईं” को विशेष रूप से महत्वपूर्ण बताया। यह पुस्तक ब्रज क्षेत्र के आर्थिक ढाँचे, सामाजिक संरचना, धार्मिक संस्थाओं, मुगल प्रशासन और गाँवों की गतिशीलता पर आधारित एक गहन अध्ययन है। उन्होंने कहा कि भारत में इतिहास शोध की संभावनाएँ बहुत व्यापक हैं, लेकिन यह ज़रूरी है कि अध्ययन  तथ्यपरक हों, न कि मनगढ़ंत।


16 नवंबर 2025

गीतकार सोम ठाकुर आगरा के लोगों के दिलों की धड़कन हैं

 

सोम ठाकुर आज भी हमारे बीच हैं। उनकी कविताएँ, गीत और मधुर आवाज़ आगरा की गलियों में गूँजती हैं और इस शहर की सांस्कृतिक धड़कन का हिस्सा बनी हुई हैं। उनके शब्द रोज़मर्रा की ज़िंदगी में प्रेम, संवेदनशीलता और सौंदर्य का अनुभव कराते हैं। "छोड़ चली घर तेरा बाबुल, ले चली तू अपनी यादें,भइया रे भइया, तुझको क्या हो गया,ये गीत आज भी आगरा की गलियों में गूँजते हैं और हर उम्र के लोगों के दिलों को छूते हैं। गीतकार और कवि सोम ठाकुर आज भी सक्रिय रूप से अपनी कविताओं और गीतों के माध्यम से लोगों तक अपने शब्दों की मिठास पहुँचाते हैं। 

सोम ठाकुर का जन्म 5 मार्च 1934 को आगरा, उत्तर प्रदेश में हुआ। आगरा की ऐतिहासिक गलियों, यमुना की ठंडी हवाओं और ब्रज की मधुर बोली में पली-बढ़ी प्रतिभाएँ आज भी इस शहर की सांस्कृतिक धड़कन हैं, और उनमें प्रमुख हैं सोम ठाकुर। 

गीतों में बसती संवेदनाएँ और उनका काव्यिक जादू

सोम ठाकुर की लेखनी में प्रेम, करुणा, प्रकृति और मानव भावनाओं का सुंदर संगम  स्पष्ट रूप से महसूस किया जा सकता है। उनके गीत और कविताएँ सरल, सीधे और दिल को छू लेने वाली हैं। उनके शब्दों में हमेशा संगीत का प्रवाह रहता है जैसे हर कविता और गीत जीवंत धुन में बदल जाए। यही कारण है कि उनके कविता पाठ और गीत सुनने का अनुभव हर उम्र के लोगों के लिए आज भी उतना ही ताज़ा और मोहक है।


11 नवंबर 2025

वैद्य रामदत्त की गली: आगरा की ऐतिहासिक धरोहर और आयुर्वेदिक परंपरा

 

आगरा का पुराना शहर सिर्फ ताजमहल और किलों का घर नहीं है, बल्कि यह छोटी-छोटी गलियों, उनके इतिहास और उन गलियों में बसी परंपराओं का भी केंद्र है। इनमें से एक महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध गली है वैद्य रामदत्त की गली। यह गली अपने समय में आयुर्वेदिक चिकित्सा और पारंपरिक ज्ञान का केंद्र मानी जाती थी।

सदियों पहले वैद्य रामदत्त ने अपने रोग-उपचार केंद्र की स्थापना इसी गली में की थी। उनके समय में लोग दूर-दूर से जड़ी-बूटियों, नाड़ी-पठन और आयुर्वेदिक उपचार के लिए इस गली में आते थे। गली की पतली और संकरी सड़कें आज भी उस जमाने की हलचल की याद दिलाती हैं। हर ईंट और हर दीवार में इतिहास की गूँज सुनाई देती है।

 वैद्य रामदत्त का जीवन और उनकी चिकित्सा पद्धति

वैद्य रामदत्त सिर्फ एक चिकित्सक नहीं थे, बल्कि वे स्थानीय समाज के मार्गदर्शक और स्वास्थ्य के संरक्षक माने जाते थे। उनके पास आयुर्वेद का गहन ज्ञान था और वे रोगियों का इलाज प्राकृतिक

10 नवंबर 2025

आगरा की सड़कों पर कैमरे की आँख: 1950 का दौर

 

1950 का दशक आगरा के लिए केवल ताज महल या लाल किला ही नहीं, बल्कि शहर की सड़कों पर जिंदगी के छोटे‑छोटे दृश्य भी उतने ही जीवंत थे। उस समय बड़े‑बड़े फॉर्मेट कैमरे, ट्राइपॉड और फिल्म रोल्स वाले फोटोग्राफर शहर के माहौल को अपने लेंस में कैद करने की कोशिश करते थे।

 स्टूडियो से सड़क तक

उस समय आगरा में कुछ प्रसिद्ध फोटोग्राफ़ी स्टूडियो थे, जैसे Priya Lall & Sons Photo Studio, जो 1878 में स्थापित हुआ था। यहाँ मुख्यतः पोर्ट्रेट और परिवारिक फोटो खींचे जाते थे। लेकिन कुछ फोटोग्राफ़र ऐसे भी थे, जिन्होंने अपने बड़े कैमरे लेकर सड़क की जीवंत झलक को कैद करने की ठानी।

इन फोटोग्राफ़रों के लिए चुनौती थी,बड़े कैमरों को ले जाना कठिन था।हर तस्वीर के लिए फिल्म रोल सीमित था। शहर की हलचल और लोग अक्सर कैमरे के प्रति आशंकित रहते थे।

 सड़क‑फोटोग्राफ़ी के दृश्य

1950 के आगरा में आप रिक्शा, बैलगाड़ी, हाथ में सामान लिए दुकानदार, बच्चों का खेल और बाजार की हलचल देखते। बड़े कैमरे के साथ फोटोग्राफ़र इन क्षणों को सावधानी से फ्रेम करते।

एक आम दृश्य: ताज महल की सफेदी के पीछे, सड़क पर बैठे रिक्शा चालक

3 नवंबर 2025

कबीर की वाणी से गूंज उठा आगरा – क्वीन एम्प्रेस मैरी लाइब्रेरी में सुधीर नारायण का कार्यक्रम ढाई आखर प्रेम का

 

आगरा की ऐतिहासिक क्वीन एम्प्रेस मैरी लाइब्रेरी में आयोजित कार्यक्रम ‘ढाई आखर प्रेम का’ प्रेम, भाईचारा और सामाजिक सौहार्द की अनूठी मिसाल बन गया। इस विशेष आयोजन में प्रख्यात ग़ज़ल गायक सुधीर नारायण ने संत कबीर दास की रचनाओं को सस्वर प्रस्तुत कर श्रोताओं को भावविभोर कर दिया।

सुधीर नारायण ने कहा कि अंधविश्वास, व्यक्ति पूजा, पाखंड और ढोंग के खिलाफ जो संदेश कबीर दास ने 15वीं सदी में दिया था, वह आज और भी प्रासंगिक हो गया है। हाल ही में अमेरिका सहित कई देशों का दौरा कर लौटे श्री नारायण ने बताया कि अब विदेशों में भी कबीर के दोहे और सबदों को समझने की जिज्ञासा बढ़ी है।

 कबीर की वाणी का वैश्विक असर

कार्यक्रम के दौरान सुधीर नारायण ने कहा कि इंटरनेट के माध्यम से कबीर दास का दर्शन अब विश्व के हर कोने तक पहुँच चुका है। उन्होंने बताया कि आज दुनिया भर में लोग कबीर की साखी, सबद और रमैनी को न केवल जानते हैं बल्कि उन्हें गहराई से समझते भी हैं। उन्होंने आगरा में अपने पहले कार्यक्रम के रूप में इस मंच को चुनने पर खुशी जताई और कहा कि क्वीन एम्प्रेस मैरी लाइब्रेरी का