-जनहित के बावजूद अतिरेक उपयोग के प्रति सचेत रहना होगा: ह्यूमन ड्यूटी फाऊंडेशन
आगरा: सूचना का अधिकार एक बार फिर पैना होने जा रहा है । मनमानी फीस बढाकर कई कार्यालयें ने आम जनता की जानकारी जानने के हक से दूरी बढायी हुई थी किन्तु अब पचास रूपये की अधिकतम फीस निर्धारित हो जाने से अधिकांश कार्यालयों में इसे बदलने की प्रक्रिया शुरू हो जायेगी।
सर्वोच्च न्ययालय ने 20मार्च 2018 को दिये अपने नवीनतम निर्णय में अधिकतम फीस निर्धारण का यह
निर्णय लिया है। वर्तमान में आर टी आई एक्ट के तहत सूचना मांगने वाले को अधिकतम 10 रूपये की फीस का प्राविधान है । इसके अलावा प्रति पृष्ठा फोटो कापी खर्च के रूप में अतरिक्त धन चुकाना पडता है। प्रतिकॉपी फोटो स्टेट पर तो सर्वोच्च न्यायालय ने कुछ नहीं कहा है न ही यह मामला याची की ओर से उठाया ही गया था। आर टी आई एक्ट के सैक्शन 27 व 28 में फीस और व्ययों के निर्धारण में मिले अधिकारों का कुद राज्य सरकारों व अपीलीय अधिकारियों के द्वारा जमकर दुरोपयोग किया जा रहा था और फीस बढाने कर जानकारी का अधिकार का उपयोग करने वालों को हतोत्साहित करने की अधोषित नीति सी बन गयी थी।
फीस के संबध में कोर्ट का आदेश अधिकतम राशि के परिप्रेक्ष्य में ही है किन्तु भारत सरकार के डिपार्टमेंट आफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग (DoPT) ने कोर्ट के आदेश के परिप्रेक्ष्य में जानकारी के अधिकार के तहत आवेदन की फीस ही पचास रुपये कर डाली । फीस के साथ पूछी गयी जानकारी की बीस पेजों तक की फोटो कापी भी सरकारी विभागों को देनी होगी।इस बढोत्तरी का आधार केवल उपयुक्त आवेदकों के द्वारा ही जानकारी के अधिकार के उपयोग को सीमित रखना है। गरीबी की रेख के नीचे के राशनकार्ड वालों को दस रूपये की फीस तथा कापी पर आने वाला खर्च पूर्व की तरह ही माफ रहेगा।यह बात अलग है कि अब गरीबी की रेख के नीचे के राशन कार्ड (बीपीएल) कार्ड बनना बन्द हो चुके है । इनका स्थान पात्र ग्रहस्था कार्ड ले चुके हैं। तकनीकि द्ष्ट से इस बदलाव के परिप्रेक्ष्य में भी आर टी आई एक्ट में संशोधन समावेश सामायिक जरूरत है।
वैसे सूचना के अधिकार के तहत बी पी एल कार्ड धरकों को देश भर में जमकर दुरोपयोग होता रहा है। सक्षम खास करके ठेकेदार अपने यहां कार्यरत बीपीएल कार्डधारकों का फीस और अन्य खर्च मुक्त जानकारियों जुटाये जाने को उपयोग करते हैं।
पोस्टल डिपार्टमेंट भी आर टी आई के काम में अब तक खास सकारात्मक साबित नहीं सका है। हर आर टी आई अर्जी के साथ दस रूपये का पोस्टल आर्डर और बाद में फोटो कापियों के खर्च के रूप में अपेक्षित की गयी राशि का पोस्टल आडर्र लगाना होता है। चूंकि स्टाफ की कमी और वर्किंग स्टाइल ई-गवर्नेंस वाली हो जाने से पोस्टल आर्डर बनाना अब काफी मुश्किल भरा तथा विभागीय दृष्टि से खर्चीला हो चुका है।पिछले कई साल से पोस्टल डिपार्टमेंट से मांग की जाती रही है कि वह आर टी आई आवेदनपत्रों के साथ संलग्न करने के लिये रसीदी स्टांप के समान ही दो, दस व पचास रुपये के स्टांप जारी करे। किन्तु अब तक इसे विभाग अमल में नहीं ला सका है।
जनसामान्य के लिये राहतकारी
नागरिको को कर्त्तव्य बोध के प्रति सक्रिय ह्यूमन ड्यूटी फाऊंडेशन( एच ड एफ) के चेयरमैन , शिक्षाविद आर
आर के सचदेवा |
के सचदेवा ने कहा है कि नागरिक अधिकारों का समुचित उपयोग हमेशा उनके लिये विचारणीय रहा है। जहां तक जनसूचना अधिकार का प्रश्न है उन्हे लगता है कि वर्तमान में असंतुलन का दौर है। जहां नागरिकों में अनेक जनसूचना के अधिकार का गैर जरूरी उपयोग कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर अधिकारियों में भी एक वर्ग ऐसा है जो कि ना तो कार्यालय के दरबाजे पर पहुंचने वालों से मिलना पसंद करते है और नहीं रिसीव्ड की हुई डॉक या अर्जियों के जबाब देना ही। अनेक कार्यालयों में तो डॉक रिसीव करवा के प्राप्ति की रसीद प्राप्त करना तक परेशानी भरा होता है। जाहिर है कि ऐसी स्थिति में जनसूचना के अधिकार का इस्तेमाल करना ही विकल्प रहजाता है।
श्री सचदेवा ने कहा कि अगर सरकारी विभाग अपने पोर्टलों या आधिकारिक वेव साइटों पर जनसूचना के अधिकार के तहत दिये गये जबाबों को अपलोड करना शुरू करदें तो स्थिति में एक दम बदलाव आ जायेगा। इससे जहां सवाल और जबावों की गुणवत्ता सुधरेगी वहीं एक ही किस्म की सूचनाओं को पूछने का क्रम भी थमेंगा। वैसे सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा अधिकतम फीस निर्धारण 50 रुपये किया जाना निश्चित रूप से जनसामान्य के लिये राहतकारी एवं स्वागत योगय निर्णय है । इससे सचिवालय की अफसरशाही तक आम जनता की पहुंच निश्चित रूप से एक हजार रूपये से पचास रुपये में ही संभव हो जायेगी।