समाचार है कि सपा और बसपा ने तमाम मतभेदों को पीछे छोड़ राष्ट्रीय स्तर पर महागठबंधन बनाने की कोशिश शुरू कर दी है। इस महागठबंधन में कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियां भी हाथ मिला सकती हैं। यदि सपा और बसपा वास्तव में अपने मतभेदों को दूर कर सके तो अगले लोकसभा चुनाव भाजपा क लिए आसान नहीं होंगे। अखिलेश यादव और मायावती का मिलन बिलकुल वैसा ही है जैसे कि 1993 में मुलायम सिंह यादव और कांशीराम के बीच हुआ था। यह बात सही है सीटों का बटवारा आसान नहीं होगा। कहा जा रहा है कि सीट बंटवारे का आधार 2014 लोकसभा चुनाव परिणाम होगा। इसके मुताबिक 2014 में जीती हुई सीटों के अलावा, जो दल जिस सीट पर दूसरे नंबर पर रहा है, वहां उसी दल की दावेदारी कायम रहेगी।