-- कांग्रेस के सत्ता से बाहर होने के कारणों तक को दूर नहीं नहीं किया जा सका है अब तक
डा सुब्रहामण्यम स्वामी |
आगरा: भाजपा को 2019 मे अगर सत्ता में बने रहना है, सरकार में कई बडे परिवर्तन करने होंगे, इनमें वित्त मंत्री पद का दायित्व पार्टी के तेज तरार सांसद सोंपना भी शामिल है। यह कहना है युवा एडवोकेट और हिन्दू युवा वाहिनी सरीखे भाजपा को सत्ता में पहुंचाने वाले संगठन के पदाधिकारी के रूप में सक्रिय श्री सुरेश शर्मा एडवोकेट का। उन्होंने कहा कि जिस संगठन से वह संबधित है, वह हिन्दू समाज के हितो की सुरक्षा तक सीमित है , किन्तु एक एडवोकेट के नाते वह राष्ट्रीय हित और राजनैति के बने हुए माहौल की
समझ भी रखते हैं।
समझ भी रखते हैं।
सुरेश चन्द्र शर्मा हिन्दू युुुुवा वाहिनी |
श्री शर्मा ने कहा कि केन्द्र की वित्तीय नीतियों पिछले चार बजटों के दौर से प्रभावी हैं किन्तु देश की अर्थव्यवस्था पर अब कोयी सकारात्मक असर नहीं पडा है। कांग्रेस को जिन कारणों से जनता ने उखाड फैका था उन्हे श्री अरुण जैटली की नीतियों ने बरकरार रखा है।फलस्वरूप पहले जहां किसान ही आत्महत्याये कर रहे थे वहीं अब उद्यमियों को भी निराशा के दौर से उबरने को यही रास्ता दिखने लगा है। यह कोयी छोटी बात नहीं है, सत्ता दल होने के नाते हालातों में सुधार करना होगा इसके लिये संभव विकल्पों पर विकल्पों विचार करना होगा। इनमें ही डा. स्वामी को वित्त मंत्रालय की कमान सौंपा जना भी एक है। वह परपक्व राजनीतिज्ञ होने के साथ साथ लोक वित्त के बारे मे गहरी समझ रखते हैं।
श्री शर्मा ने कहा कि जनता आयकर मे राहत चाहती है , इन्वेस्टमेंट सैक्टर इन्सपैक्टर राज नुमा ‘ क्लोज वाच ‘ से मुक्ति चाहता है। यह सब नये वित्त मंत्री के बनने से ही संभव हो सकेगा और इसके लिये डा सुब्रहामण्यम स्वमी से उपयुक्त और कोयी नहीं हो सकता । उन्होंने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल विहारी बाजपेयी की सरकार में वित्तमंत्री रहे श्री यशवंत सिन्हा ने तो दो साल पूर्व ही केन्द्रीय वित्तमंत्री की नीतियों में बदलाव के लिये पुरजोर आवाज उठायी थी।
असंगठित क्षेत्र के कामगारों के बीच सक्रिय मूल रूप से बाम पंथी विचारधारा वाले प्रमुख समाज शास्त्री श्री अभिनय प्रसाद का कहना है कि भाजपा 'ठेठ ' रूढीवादी उन वित्तीय नीतियों से हट नहीं पा रही है जिनके कारण देश की जनता का धन विदेश जाना और तेजी के साथ शुरू होने वाला है। मैं सुब्रहामण्यम स्वामी या किसी अन्य का नाम तो नहीं सुझा सकता किन्तु इतना जरूर मानता हूं कि पिछले चार साल में काम के अवसरों में कमी आयी है। एफ डी आई के नाम पर विदेशी वित्तीय निवेशो के बजन से बेहद दबने वाले हैं। गैर जरूरी क्षेत्रों पैसा लगाये जाने को विदेशियो को मौका दिया जा रहा है। इन्वेस्टर मीटों जैसे आयोजनों के दौर में छोटा कारोबारी हाशिये पर पहुंच चुका है। सरकार से उसकी संवाद हीनता की स्थिति बनी हुई है जबकि सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों का एक वर्ग आम नागरिकों को कर दायरे मे लाये जाने के नाम पर नागवार पूछताछ करके ' कारोबारी गोपनियता ' को सरकारी रिकार्डों में लाये जाने के नाम पर व्यवसायियों और उद्यमियों के सामने अभूतपूर्व मुश्किलें उत्पन्न कर रहा है।