-- पत्रकारों से संबधित शासनादेश तक श्रमायुक्त की वेवसाइड पर समय से अपलोड नहीं किये
जारी आदेश( अधिसूचना संख्या : 1117/36-1-14-539(एस.टी.)77टी. सी.-2 लखनऊ दिनांक ¬1211.2014) में सवोच्च न्यायलय के द्वारा दिये गये मार्गदर्शन के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट कर दिया था कि अपर, उप एवं सहायक श्रमायुक्त मजीठिया बेज बोर्ड संबधित मामलों को सुनने के सक्षम प्राधिकारी हैं।इतना महत्वपूर्ण आदेश होने के बावजूद यह न तो उ प्र के श्रमायुक्त की वेव साइट पर ही अपलोड हुआ और नहीं प्रदेश के उपश्रमायुक्तों व सहायक श्रायुक्तो और श्रम न्यायालयों के समक्ष ही पहुंच सका।
शारदा विहार वाटिका में मजीठिया बेज वोर्ड बादों की स्थिति
पर चर्चचारत पत्रकार श्री विनोद भाारद्वाज,ओम ठकुुुर आदि । |
आगरा:उ प्र में श्रम विभाग श्रमिकों की
अपेक्षा सेवायोजकों के हक के प्रति ज्यादा
प्रतिबद्ध है कम से कम मजीठिया बेज बोर्ड के अनुसार वेतन और पूर्व की सेवा अवधि का
भुगतान अवशेष मांग रहे पत्रकारों मे से अधकांश का तो यही अनुभव है। पश्चिमी उत्तर
प्रदेश के जनपदों में पत्रकारों के द्वारा दायर किये हुए वादों में से अधिकांश अब तक लंबित सी ही स्थिति में ही हैं। पीठासीन अधिकारियों
की उदासीनता और तारीखें दिये जाने के चला रखे गये क्रम इसके प्रमुख कारण में शामिल हैं। किन्तु बडा कारण मजीठिया वाद के संबध में
जारी शासनादेशों की जानकारी गुपचुप रखना है।
यह स्थिति तब है जबकि प्रदेश में ई-गवर्नेंस लागू
है और छोटे से छोटा आदेश विभागीय वेव साइट पर अपलोड किया जाना अनिवार्यता हैा।किन्तु
इस व्यवस्था को नजर अंदाज करके शासन द्वारा सर्वाच्च न्यायालय के द्वारा 12 नवम्बर
2014 को
जारी आदेश( अधिसूचना संख्या : 1117/36-1-14-539(एस.टी.)77टी. सी.-2 लखनऊ दिनांक ¬1211.2014) में सवोच्च न्यायलय के द्वारा दिये गये मार्गदर्शन के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट कर दिया था कि अपर, उप एवं सहायक श्रमायुक्त मजीठिया बेज बोर्ड संबधित मामलों को सुनने के सक्षम प्राधिकारी हैं।इतना महत्वपूर्ण आदेश होने के बावजूद यह न तो उ प्र के श्रमायुक्त की वेव साइट पर ही अपलोड हुआ और नहीं प्रदेश के उपश्रमायुक्तों व सहायक श्रायुक्तो और श्रम न्यायालयों के समक्ष ही पहुंच सका।
उ प्र श्रमायुक्त के द्वारा 12 नवम्बर 2014 को जारी किया गया आदेश जिसे यथासंंभव गुपचुप रखा गयाा। --------------------------------------------------------------------------- |
इस आदेश के अभाव में सेवायोजकों के अधिवक्ताओं ने, न केवल श्रम न्यायलों के पीठासीन अधिकारियों, उप श्रमायुक्तों और सहायक श्रमायुक्तों को ही मजीठिया वाद सुनवायी के मामले में भ्रमित रखा अपितु उनके द्वारा मजीठिया वाद की सुनवायी को ही उनके क्षेत्राधिकार से बाहर बताते रहे। सबसे दिलचस्प तथ्य यह है कि श्रम विभाग छोटे समाचार पत्रों के प्रकाशक प्रतिष्ठानों के खिलाफ तो तत्परता से कार्रवाहीयां करता रहा किन्तु कार्पोरेट सैक्टर के उन मल्टी एडीशन प्रकाशको की कैटेगरी को निर्धारित करने में भूमिका हीन रहा जो पांच सौ करोड वार्षिक टर्नओवर वाले हैं तथा वाकायदा स्टाक एक्सचेंजों में पंजीकृत हैं।
वरिष्ठ पत्रकार श्री विनोद भारद्वाज ने कहा है कि श्रम विभाग के काम काज की जांच होनी चाहिये । वर्तमान में इसकी कार्यशौली श्रमिक वर्ग विरोधी है । उन्होंने कहा कि श्रम न्यायालयों के उन पीठासीन अधिकारियों को बनाये रखने पर भी सरकार को विधिक दायरे में विचार करना चाहिये जो कि वाद निस्तारण की प्रक्रिया को गति नहीं दे पा रहे हैं यही नहीं पक्षाकारों को एक ही मामले में तीन से अधिक तारीखें देकर वादों को अधिक लम्बा और खर्चीला किये जाने की प्रक्रिया के प्रति भी उदासीन हैं।
वरिष्ठ पत्रकार श्री विनोद भारद्वाज ने कहा है कि श्रम विभाग के काम काज की जांच होनी चाहिये । वर्तमान में इसकी कार्यशौली श्रमिक वर्ग विरोधी है । उन्होंने कहा कि श्रम न्यायालयों के उन पीठासीन अधिकारियों को बनाये रखने पर भी सरकार को विधिक दायरे में विचार करना चाहिये जो कि वाद निस्तारण की प्रक्रिया को गति नहीं दे पा रहे हैं यही नहीं पक्षाकारों को एक ही मामले में तीन से अधिक तारीखें देकर वादों को अधिक लम्बा और खर्चीला किये जाने की प्रक्रिया के प्रति भी उदासीन हैं।
वरिष्ठ पत्रकार एवं ताज प्रेस क्लब आगरा के पूर्व अध्यक्ष श्री ओम ठाकुर ने कहा कि मजीठिया वादों के खर्चों को सरकार स्वयं उठाये क्यों कि ज्यादातर पत्रकार सहायक और उपश्रमायुक्तों के बाद की स्थिति पर पहुंचे हुए मामलों में वकीलों की फीस व न्यायालयों का खर्च उठाने की स्थिति में नहीं हैं। जब कि सोवायोजक खास कर कॉर्पोरेट सैक्टर के मीडिया हाऊस अपने संसाधनों के बूते पर स्तरीय विधिक सेवायें लेने में सक्षम हैं। उन्होंने कहा कि पत्रकारों और गैर पत्रकारों के छै महीने से ज्यादा पुराने लम्बित मामलों की समीक्षा की जानी चाहिये।
श्री ठाकुर ने कहा कि हकीकत तो यह है कि प्रदेश में मजीठिया बेज बोर्ड की सिफारिशें लागू नहीं हैं और सरकार इस कार्य में कोयी दिलचस्पी नहीं ले रही है। श्रम विभाग के द्वारा बडे मीडिया हाऊसों में प्रवृत्तन कार्य को बन्द सा किया हुआ है।फलस्वरूप समाचार पत्रों के सेवा रत गैर पत्रकार कर्मचारी और पत्रकार दोनों को ही सेवायोजकों के द्वारा दी जाने वाली मनमानी सैलरियों पर काम करना पड रहा है।
प्रिंट एंड इलैक्ट्रानिक मीठिया एसोसियेशन की स्टेट कमेटी के सदस्य डा नरेनद्र प्रताप ने कहा कि जनपद स्तरीय श्रमबंधु कमेटियों में मीडिया हाऊसों से मुकदमें लड रहे पत्रकारों और गैर पत्रकारों को शामिल किया जाना चाहिये । शारदा विहार (दयालबाग) स्थित वाटिका मे हुई बइस बैठक में आई एफ डव्लू जे के वाइस प्रेसीडैंट श्री हेमंत तिवारी और जनरल सैकेट्री श्री प्रख्यात एडवोकेट श्री परमानंद पांडे से कुछ दिन पूर्व हुई वार्ता की जनकारी पत्रकार राजीव सक्सेना ने देकर कहा कि श्री पांडेय जो कि सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट हैं तथा मजीठिया वाद लड रहे हैं। वार्ता के दौरान उन्हों ने कहा था कि मजीठिया वाद लड रहे पत्रकारों को विधिक सहायता दिलवाने के लिये उ प्र सरकार से वार्ता करेंगे। श्रम न्यायालयों के पीठासीन अधिकारियों में से दायित्व के प्रति उदासीन अधिकारियों के बारे में भी सरकार को आधिकारिक रूप से जानकारी दिये जाने संबधी प्रक्रिया पर भी श्री पांडेय ने सहमति जतायी। मीटिंग में उपस्थित पत्रकार फौजदार ने कहा कि श्रम विभाग के खिलाफ वह प्रशसन से तथ्यपरक संवाद कर चुके हैं। उन्होंने उम्मीद जतायी कि आने वाले समय में इसके परिणाम जरूर आयेंगे। पत्रकार शेष बहादुर और केशव सक्सेना आदि भी इस अवसर पर विचार व्यक्त करने वालों में शामिल थे।