--- फीस घटाने से कई सैल्फ फाईनेंस शिक्षण संस्थायें पहुंच सकती हैं बन्द होने के कागार पर
वित्तीय संकट का शुरू हुऐ दौर से विद्यार्थियों का ही नहीं स्कूलों का भविश्य तक खतरे मेंं । |
आगरा : उ प्र सरकार के द्वारा बीस हजार से ज्यादा फीस वसूलने वाले स्कूलों पर बंदिश लगाये जाने संबधी ‘यू पी सैल्फ फाईनेंस स्कूल (फिक्सेशन आफ फीस ) आर्डीनेंस 2018 ‘ अध्यायदेश लाकर जनता के बीच प्रशंसा पाने का काम तो जरूर किया है किन्तु प्रदेश भर के स्कूल प्रबंधकों को शिक्षासत्र शुरू होते ही भारी मुश्किल में डाल दिया है1 विद्यालयों की नयी इकाइ्रयों की स्थापना तो दूर मौजूदा इकाईयों और परिसरों की गतविधियां संचालन भी मुश्किल भरा हो जायेगा। दरअसल सरकार ने यह कदम अत्यंत जल्दबाजी में केवल वाही वाही लूटने के लिये ही उठाया लगता है। अगर वह यह कदम नहीं उठाती और इलहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बैंच के द्वारा चार दिन पूर्व जारी नोटिसों पर कोयी आदेश दे देता तो उसे कुछ भी हासिल नहीं होना था।
इस जल्दबाजी में सरकार यह तथ्य भूल गयी कि जिन शिक्षण संस्थानों के बारे में वह
कानून बनाने जा रही है, उन्हे वह कोयी वित्तीय मदद नहीं करती साथ ही शिक्षण संस्थाओं के संचालन में जरूरी निवेशों की मूल्य बढोत्तरी नियंत्रित करने पर उसकी कोयी भूमिका नहीं है। वैसे शिक्षा विभाग की वेव साइट पर फीस सुधार संबधी एक प्रारूप पिछले साल से पडा हुआ था तथा उस पर सुझाव मांगे गये थे। किन्तु इसे एक ओपचारिकता ही माना जा सकता है क्यो कि इस वेव साइट को सी बी एस इ्र और आई सी एस ई विद्यालय संचालक नहीं देखते । यही नहीं निजीस्कूल संचालकों के तमाम सशक्त फोरमों और संगठनों के होने के बावजूद योगी सरकार का एक भी मंत्री या सचिव स्तरीय अधिकारी इस मसले पर सीधे संवाद को समय ही नहीं निकाल सका।
सरकार अपने स्कूलों के स्तर की गिरावट के प्रति बेफिक्र
सैल्फ फाईनेंस स्कूलों को उ प्र में संचालित करने की अनुमति दिये जाने की स्थिति एक दिन में ही नहीं बनी जब यह तय हो गया कि शिक्षा की बढती मांग को सरकार अपने राजस्व से पूरा नहीं कर सकती तो निजीक्षेत्र की भागीदारी के लिये रास्ता खोला गया गया। शिक्षा विभाग शतप्रतिशत सरकारी धन से संचालित विद्यालयों की बदहाली को दूर करनाप तो दूर के परिसरों में स्थित भवनों के अनुरक्षण कार्यतक को सही तरीके अंजाम नहीं दिलवा सका।
योगी सरकार के आने के बाद उम्मीद थी कि सरकारी शिक्षण संस्थानों की स्थिति में सुधार आयेगा और शिक्षण कार्य की गुणवतता भी बढेगी किन्तु पिछले एक साल में शिक्षण संस्थाओं में जो कुछ चला वह हाल में संपन्न हुई यू पी बोर्ड की परीक्षाओं से ही स्पष्ट है। परीक्षा के लिये अपने को नाकाबिल पाने वाले छात्रों की इस बार की संख्या पूर्व के सभी रिकार्ड पार कर गयी। अगर सरकारी शिक्षण संस्थाओं का शिक्षास्तर सुधर जाता तो शायद ही कोयी अपने बच्चों को प्राईवेट शिक्षण संस्थाओं में ज्यादा फीस लेकर पढने भेजता।
कई बार सरकारी क्षिक्षा की हो चुकी है ' किर - किरी '
शिक्षा के गिरते स्तर को लेकर सरकार की कई बार किर किरी हो चुकी है, इलहाबाद हाई कोर्ट ने जब एक बार सभी सरकारी अधिकारियों के बच्चों को सरकारी स्कूलों में ही शिक्षा लेना अनिवार्य करने का आदेश दिया तो उसका अनुपालन नहीं करवाया जा सका।
स्ववित्त पोषित शिक्षा व्यवस्था में अनावश्यक दखल
जो भी हो उ प्र मंत्रिमंडल के द्वारा जारी किया गया अध्यादेश मौजूदा स्थतियों के सर्वथा प्रतिकूल तो है ही साथ ही स्ववित्त पोषित शिक्षा व्यवस्था में अनावश्यक दखल है। इसका प्रत्यक्ष असर स्तरीय शिक्षा लेने के अवसर ,शिक्षक और शिक्षेणेत्तर क्षेत्र में रोजगार के अवसर सीमति के रूप में दिखेगा।
लाइक अहमद की जनहित याचिका
इलहाबाद हाई कोर्ट सी बी एस ई और आई सी एस ई से प्राईवेट स्कूलों में वसूली जाने वाली फीस को तर्कसंगत बनाये जाने को कहा जिससे कि फीस के नाम पर चल रही मनमानी रुक सके। इलहाबाद हाईकोर्ट की बैंच ने सी बी एस ई और आइ्र सी एस एस ई बोर्ड को नोटिस जारी करके चार सप्ताह में जबाव दाखिल करने का निर्देश दिया है।
न्यायलय की लखनऊ बैंच ने उ प्र सरकार से इस संबध में जबाब तलब किया है।न्यायमूर्ति विक्रम नाथ एवं अब्दुल मोइन की दो सदस्यी पीठ ने लाइक अहमद के द्वारा दायर की गयी जनहित याचिका में उ प्र सरकार भी पार्टी है। . याची के अधिवक्ता की ओर से कहा गया था कि गुजरात सरकार 2017 में फीस के संबध में कानून बनाकर स्थिति में सुधार का प्रयास किया था जिसे कि न्यायालय ने भी स्वीकार किया। इसी प्रकार का कानून बनाया जाना यू पी सरकार के समक्ष भी विचाराधीन है किन्तु 2018-19 का शिक्षा सत्र शुरू हो चुका लेकिन इस पर अब भी निर्णय होना रह गया था1 याची की ओर से उच्च न्यायालय से इस संबध में शीघ्रता के साथ निर्णय लेने को कहने का अनुरोध किया गया था। जनहित याचिका में यह शामिल कि प्राईवेट स्कूल फीस वसूली तो कर ही रहे है साथ ही उसका विवरण न तो अलग से ही दे रहे हैं और नहीं अपनी वेव साइटों पर ही अपलोड कर रहे हैं। याचीका में कहा गया है कि शिक्षा पाने का अधिकार मूला अधिकार है , इस लिये विद्यालय मुनाफा कमाने के लिये नहीं चलाये जा सकते।