--उपजा के पूर्व उपाध्यक्ष ने केन्द्रीय श्रम मंत्री के समक्ष बरेली में उठाया था खालीपडे पदो का मसला
निर्भय सक्सेना पूर्व उपजा उपाध्यक्ष |
आगरा: श्रम मंत्रालय पर अत्यधिक दबाब पडने से उ प्र की योगी सरकार की प्रदेश के अखबार प्रबंधनो को उपकृत करने की नीति नाकाम हो गयी है और प्रदेश के मंडल मुख्यालयों वाले जनपदो सहित उन अन्य सभी जनपदों में श्रम न्यायलयों में रिक्त पड़े पीठासीन अधिकारियों की नियुक्ति करनी पड़ी है जहां कि एक भी मजीठिया बेज बोर्ड संबधी वाद लंबित है।
विभाग के काम काज की लगातार हो रही शिकायतों और हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट तक लगातार पहुंच रहे मामलों के कारण बढते दबाब को दृष्टिगत उ प्र सरकार को बैकफुट पर आना पडा है ।फलस्वरूप प्रदेश के प्रमुख सचिव(श्रम) सुरेश चंद्रा ने सेवानिवृत्त आईएएस विपिन कुमार द्विवेदी को श्रम न्यायालय लखनऊ, सेवानिवृत्त एचजेएस अमरीक सिंह को श्रम न्यायालय कानपुर(1), सेवानिवृत्त पीसीएस रवींद्र दत्त पालीवाल को श्रम न्यायालय
कानपुर(3), सेवानिवृत्त एचजेएस शांति प्रकाश अरविंद को श्रम न्यायालय झांसी,सेवानिवृत्त एचजेएस विनोद कुमार को श्रम न्यायालय बरेली, सेवानिवृत्त एचजेएस हरीश कुमार फर्स्ट को श्रम न्यायालय सहारनपुर, सेवा निवृत्त एचजेएस मो. शरीफ को श्रम न्यायालय वाराणसी, सेवानिवृत्त एचजेएस पुरनेन्दू कुमार श्रीवास्तव को श्रम न्यायालय गोरखपुर, सेवानिवृत्त एचजेएस मनोहर लाल को श्रम न्यायालय रामपुर, सेवानिवृत्त एचजेएस घनश्याम पाठक को श्रम न्यायालय फैजाबाद, सेवानिवृत्त एचजेएस राम कृष्ण उपाध्याय को श्रम न्यायालय इलाहाबाद का पीठासीन अधिकारी नियुक्त किया गया है।
इसके अलावा न्यायमूर्ति शैलेन्द्र कुमार अग्रवाल(सेवानिवृत्त) को औद्योगिक न्याधिकरण लखनऊ, न्यायमूर्ति एसके सिंह (सेवानिवृत्त) को औद्योगिक न्यायधिकरण गोरखपुर का पीठासीन अधिकारी नियुक्त किया गया है।
उपजा ने उठाया था मसला
उत्तर प्रदेश जर्नलिस्ट एसोसियेशन के पूर्व उपाध्यक्ष श्री निर्भय सक्सेना ने उ प्र में श्रम न्यायलयों में पीठासीन अधिकारियों के रिक्त पदो का मामला केन्द्रीय श्रम राज्यमंत्री( स्वतंत्र प्रभार) श्री संतोष सिंह गंगवार के समक्ष उठाते हुए कहा था कि उ प्र में श्रम विभाग की व्यवस्था छिन्न भिन्न सी हो गयी है। श्रम न्यायालयों में नये पीठासीन अधिकारियो की कमी से मजीटिया बेज बोर्ड से संबधित वादो तक पर सुनवायी नहीं हो रही है। केन्द्रीय श्रम मंत्री से वार्ता करने के एक सप्ताह के भीतर ही सर्वोच्च न्यायालय ने मजीठिया बेज बोर्ड वादो की सुनवायी के संबध में एक निर्णय देते हुए स्पष्ट कर दिया कि रैफ्रेंस किये हुए केसों को श्रम न्यायालयों को छै महीने के भीतर ही निपटाना होगा। जबकि उ प्र के श्रम न्यायालयों में रैफ्रेंस होकर पहुंचे मामलों में से आधे से अधिक छै महीने से पुराने हैं।
श्री निर्भय सक्सेना ने कहा है कि नियुक्त पीठासीन अधिकारियों के काम काज की भी निरंतर समीक्षा जरूरी है। क्यो कि वर्तमान में जहां श्रम अदालतेंं सुचारु हैं , वहां भी चल रहे वादो में से अधिकांश में केवल तारीखें दिये जाने का काम ही चल रहा है।
सरकार भी विभाग को सजग करे
श्रम न्यायलय के सीनियर एडवोकेट अवधेश बाजपेयी ने श्रम न्यायलयों में नियुक्तियों का स्वागत किया है और कहा है कि मजीठिया वादों के निस्तारण में तभी तेजी आ सकती है जबकि पीठासीन अधिकारी सेवा योजकों के प्रति तारीखे दिये जाने और रिकार्ड प्रस्तुत करने की समय को तय कर उस पर सख्ती से अमल करने को बाध्य करें। उन्होंने कहा कि सरकार और श्रम विभाग क्या कर रहा है इसका अंदाज इसी से लगाया जा सकता है पूरे प्रदेश में पत्रकारों से संबधित बडी संख्या में वाद लम्बित है और बीते साल उनमें से पांच भी पूरी तरह से निस्तारित नहीं हो सके हैं।
उ प्र में श्रम विभाग ढर्रा सुधारा जाये
प्रिंट ऐंड इलैक्ट्रानिक मीडिया एसोसियेशन के नरेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि पत्रकारों के मामले तक श्रम विभाग हल नहीं करवा पा रहा हे तो अन्य सामान्य श्रेणी के श्रमिकों के उत्पीडन और कम वेतन देने संबधी वादो के निस्तारण की स्थिति को लेकर क्या कहा जाये। किन्तु अब यह स्थति नहीं रहने दी जायेगी।