'पार्क माईनर' के जीर्णोद्धार से ही संभव हो सकता है स्थायी समाधान
ताजगंज में गंभीर जल संकट:बूंद बूंद पानी के लिये मौहताजी |
आगरा: ताजगंज क्षेत्र में पानी के संकट की अभूतपूर्व स्थिति बन चली है, ज्यादातर सबमर्सेबिल पंप 200 फुट तक की गहरायी वाले थे, पानी देना बन्द कर चुके हैं। केवल डीप बोरिंग वाले पंप ही संचालित रह गए हैं जो कि न्यूनतम 200 फीट से अधिक गहरायी कर लगाये गये हैं। दरअसल ताजगंज में जल संरक्षण के सापेक्ष जल दोहन 120 से 130 गुना तक है। समूचे ताजगंज क्षेत्र में जलस्तर तेजी के साथ गिर रहा है।
योंतो पूरे महानगर में ही जस्तर तेजी के साथ गिरता जा रहा है किन्तु जब भी 600 मि मी तक भी वर्षा हुई है, इस में सुधार होता रहा हे किन्तु ताजगंज इसका अपवाद
है। बीस साल पहले जो गढ्ढे या तालाब बचे रह गये उनमें से अधिकांश नव निर्मित होटलो और आवासीय परिसरों के नीचे दब गये हैं। ताजगंज में ईस्टर्न गेट ड्रेनेज सिस्टम के रहे बचे भाग को भी भूमिगत व पक्का करने की तैयारी है। पश्चिम गेट की ओर आने वाले काठ का पुल ( अब पकी कल्वर्ट) होकर यमुना नदी को जाने वाले नाले को पहले से ही पक्का और जमीनी पानी के रिचार्ज योगदान दे सकने की स्थिति वाला नहीं रहने दिया गया है।
ताजगंज के भूमिगत जलस्तर में सुधार में सबसे अधिक योगदान देने वाली रौहता नहर की शाखा 'पार्क माईनर' को नगर निगम के द्वारा बन्द किया हुआ है। सिंचाई विभाग में दर्ज इस नहर की नगर निगम पिछले दस साल से केवल कागजी सफाई करवाता रहा है ,फलस्वरूप अब यह भुमिगत चोक नाला बन कर रह गयी है। इस नहर से न केवल ताजगंज को हरियाली देने वाले पाच एकड के तालाब भरे जाते हैं बल्कि नहरी पानी के वाष्पन से पर्यावरण में बनी रहने वाली शुष्कता कम करने को आद्रता मिलती थी।
ताजगंज के जलस्तर में सुधार का
यमुना नदी से कोयी लेना देना नहीं
यमुना नदी के किनारे ताजगंज जरूर बसा हुआ है किन्तु यमुना नदी के पानी से ताजगंज के बसावट वाले भाग पर नदी के जलस्तर का कोयी असर नहीं पडता है। दरअसल किले की ओर से यू बनाती हुई यमुना नदी कर्व लेती हुई आती है और ताजमहल की रिवरसाइड वाऊंड्री को टच कर गढी चांदनी से एक दम मुडकर ताजगंज से एक दम दूर हो जाती है। वैसे भी ताजगंज यमुना नदी से तीस फीट तक ऊंचाई पर बसा है। यही नहीं जो भूमिगत सीपेज की संभावना रही होगी वह भी ताजमहल के भवनों का स्ट्रैक्चर खडा करने को हुई नीव आदि की खुदाई के बाद शून्य हो गयी होगी।
पार्क माईनर से ही हो सकेगा स्थायी समाधान
उपरोक्त तथ्य को शायद अंग्रेजों के समय के आगरा के गार्उन सुपरिंटेंडेंट एडविन एल्ड्रिन ग्रीसन ने भलीभांति समझा था । यही कारण था कि जब उन्हे बनने के बाद से ही सूखे उजाड रहने वाले सर्किट हाऊस के साथ ही मैकडौनाल्ड पार्क को हराभरा कर विक्टोरिया पार्क के रूप में तब्दील करने की जिम्मेदारी दी गयी तो उन्होंने तत्कालीन कलैक्टर ( 1905) में पार्क माईनर बनाये जाने की शर्त रखी। जिसे उन्होंने स्वीकर कर लिया । तब से पार्क माईनर 2006 तक सुचारू चली इसके बाद इसे भूमिगत कर दिया गया और हरियाली की इस अहम जरूरत को लगभग भुलाया जा चुका है।
जलाधिकार फाऊंडेशन ने की हुई है याचिका
आगरा के पानी की स्थति को लेकर सक्रिय जलाधिकार फाऊंडेशन ने जरूर पार्क माईनर को लेकर एक जनहित याचिका दायर कर रखी है किन्तु स्थानीय ब्यूरोक्रसी जो सुप्रीम कोर्ट तक में मुकदमें लडते रहने की अनुभवी है , इस याचिका को अब तक खास अहमियत नहीं दे सकी है। इस नहर पर अवैध कब्जा जमाये हुए तत्वों की लाबी को आगरा के राजनीतिज्ञों का मिला हुआ समर्थन भी ताजगंज के गिरते जा रहे जलस्तर में सुधार न आपाने का एक बडा कारण माना जाता है। हालांकि जलाधिकार फाऊंडेशन के नेशनल सैकेट्री अवधेश उपाध्याय का मानना है कि ताजगंज वासियों को जरूर न्याय मिलेगा,वैसे भी यह केवल ताजगंज के नागरिकों से जुडा मामला ही नहीं ताजमहल को सबसे ज्यादा छति पहुंचाने वाले उन घूलिय कणों के प्राहरों से बचाने से जुडा मामला भी है, जिसे लेकर नेशनल ग्रीन ट्रबयूनल और सुप्रीम कोर्ट भी बेहद चिंतत है।