-वेस्ट निस्तारण के लिये नीरीरिक्मंडेड टैक्नेलाजी इस्तेमाल को आगे आयें
आगरा: चमडा आधारित जूता उद्योग से न तो वायु प्रदूषण फैलता है और नहीं ध्वनि प्रदूषण यह कहना है आगरा ट्रेड सैंटर( ए टी सी) क्या पर्यावरण के लिये अभिशाप है, विषायक संगोष्ठी में 'जूता उत्पादन उद्योग ' से जुडे प्रमुख वक्ताओं का।
(ए टी सी) परिसर में ही आयोजित इस संगोष्ठी को संबोधित करते हुए पूर्व विधायक केशो मेहरा का। उन्होंने कहा कि जूता उत्पादन की किसी भी प्रक्रिया से प्रदूषण नहीं बढता।
एफ मैक के अध्यक्ष पूरन डवर ने कहा कि जूता उत्पादन उद्योग पूरी तरह से प्रदूषण मुक्त है।चाहे तो सरकार जूता उत्पादक इकाई के गेट पर प्रदूषण मापक यंत्र लागाकर उनकी
बात की पुष्टि कर सकती है।श्री डावर ने कहा चमडा महंगा है और इसकी करतन के वैकल्पक उपयोग व रिसाइकिलिग करने की अनेका तकनीकियां हैं।वर्तमान में भी अधिकांश बडे जूदा उत्पादक कतरन का यथोचित उपयोग ही करते हैं । जहां तक कतरने को नाले -नालियों में फेंक कर चोक करने की घटनाओं का सवाल है, इस प्रकार के अधिकांश मामलों में छोटे दस्ताकर संलिप्त मिले हैं। अगर इनसे भी कतरन संग्रहित करवाने की व्यवस्था संभव हो सके तो यह समस्या भी स्वत: ही समाप्त हो जायेगगी।
एफ कोम के विपिन सेठ के अनुसार जूता र्नियातक इकाईयां चमडे की कतनों को रिसाइकिल करता है। एफमैक के उपाध्यक्ष राजेश सहगल ने कहा कि कूडा प्रबंधन सरकार कीजिम्मेदारी है, इसके लिये उद्यमी निश्चित धन दे सकते हैं और वर्तमान मे भी कूडा निस्तारण के लिये उन्हे नियमित चुकाना
पडता है। अब यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह वह आधुनिकतम तकनीकियां अपना कर प्रदूषण रहित तरीको से कूडा और इंडस्ट्रियल वेस्ट निस्तारित करवाये।एम एस एम ई मंत्रालय के अधिकारी पीयूष श्रीवास्तव ने कहा कि लुघ ओर मीडियम इंडस्ट्रियों को भी तकनीकि अपडेट करने आगे आना होगा। नई तक नीकियां प्रदूषण को कम करने व रोकने वाली हैं। नीरी के द्वारा समर्थित डिजायनों को अपनाने वालो को वित्तीय मदद तक एम एस एम ई विभाग देता है।
पूर्व विधायक केशो मेंहरा ने टी टी जैड संबधी वाद और
और जूता उद्योग पर की चर्चा। |
(ए टी सी) परिसर में ही आयोजित इस संगोष्ठी को संबोधित करते हुए पूर्व विधायक केशो मेहरा का। उन्होंने कहा कि जूता उत्पादन की किसी भी प्रक्रिया से प्रदूषण नहीं बढता।
एफ मैक के अध्यक्ष पूरन डवर ने कहा कि जूता उत्पादन उद्योग पूरी तरह से प्रदूषण मुक्त है।चाहे तो सरकार जूता उत्पादक इकाई के गेट पर प्रदूषण मापक यंत्र लागाकर उनकी
बात की पुष्टि कर सकती है।श्री डावर ने कहा चमडा महंगा है और इसकी करतन के वैकल्पक उपयोग व रिसाइकिलिग करने की अनेका तकनीकियां हैं।वर्तमान में भी अधिकांश बडे जूदा उत्पादक कतरन का यथोचित उपयोग ही करते हैं । जहां तक कतरने को नाले -नालियों में फेंक कर चोक करने की घटनाओं का सवाल है, इस प्रकार के अधिकांश मामलों में छोटे दस्ताकर संलिप्त मिले हैं। अगर इनसे भी कतरन संग्रहित करवाने की व्यवस्था संभव हो सके तो यह समस्या भी स्वत: ही समाप्त हो जायेगगी।
एफ कोम के विपिन सेठ के अनुसार जूता र्नियातक इकाईयां चमडे की कतनों को रिसाइकिल करता है। एफमैक के उपाध्यक्ष राजेश सहगल ने कहा कि कूडा प्रबंधन सरकार कीजिम्मेदारी है, इसके लिये उद्यमी निश्चित धन दे सकते हैं और वर्तमान मे भी कूडा निस्तारण के लिये उन्हे नियमित चुकाना
पडता है। अब यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह वह आधुनिकतम तकनीकियां अपना कर प्रदूषण रहित तरीको से कूडा और इंडस्ट्रियल वेस्ट निस्तारित करवाये।एम एस एम ई मंत्रालय के अधिकारी पीयूष श्रीवास्तव ने कहा कि लुघ ओर मीडियम इंडस्ट्रियों को भी तकनीकि अपडेट करने आगे आना होगा। नई तक नीकियां प्रदूषण को कम करने व रोकने वाली हैं। नीरी के द्वारा समर्थित डिजायनों को अपनाने वालो को वित्तीय मदद तक एम एस एम ई विभाग देता है।