-- सुविधाऐं जनहितों से परे , राजाकोष पर व्यर्थ का भार:अनिल कुमार गोयल ऐड.
अनिल कुमार गोयल एडवोकेट |
आगरा: वरिष्ठ एडवोकेट अनिल कुमार गोयल ने राजनीतिज्ञों के लिये जीवन पर्यंत पेंशन की मौजूदा व्यवस्था को गैर कानूनी बताते हुए इसे बन्द किये जाने को लेकर आवाज बुंलद की है। उन्होंने कहा है कि जनप्रतिनिधित्व कानून कें तहत चुने जाने वाले सांसदों द्वारा किया जाने वाला काम और दायित्व निर्वाहन नौकरी श्रेणी का नहीं, होता तो फिर किस अधार पर उन्हें पेंशन दी जाती है। श्री गोयल का कहना है कि सांसदों को पेंशन पाने का हक नहीं है। क्यों कि राजनीति , न तो नौकरी है और न हीं भुगतान के एवज में की जाने वाली सेवा ही। श्री गोयल ने जनता के समक्ष एक विधिविज्ञ के रूप में सांसदों की पेंशन के खिलाफ आवाज उठाने का प्रयास किया है।
उन्होंने अपने जनजाग्रति अभियान प्रयास में कहा है कि वर्तमान में सांसद अपने वेतन और भत्ते व पेंशन की राशि संसद सदस्य के रूप में मिले वोट अधिकार के आधार पर बढाते रहते हैं । मतदान के इस अधिकार का जनहितों से परे वर्ग विशेष के हित में किस प्रकार दुरोपयोग होता
है , इसका इससे ज्यादा सटीक उदहारण और नहीं हो सकता। यदाकदा प्रतीकात्मक विरोध का स्वर जरूर उठता रहा है। अन्यथा जब भी वेतन, भत्ते, और पेंशन बढोत्तरी संबधी प्रस्ताव संसद में लाया गया राजनैतिक प्रतिद्वन्दियों ने भी आपसी सहमति का रास्ता ही विधयक पर मतदान के वक्त अपनाया ।
अधिवक्ता ने सांसदों के स्वस्थ्य -उपचार की मौजूदा प्रचलित व्यवस्था भी जनतांत्रिक मूल्यों के प्रतिकूल बताया है। जनप्रतिनिधियों के स्वास्थ्य पर देश की आम जनता के लिये प्रचलित स्वास्थ्य व्यवस्था से कहीं अधिक धन खर्च किया जाता है और इसके लिये जनता के लिये स्वास्थ्य- उपचार संबधी संसाधनों में कटौती कर दी जाती है। व्यापक हितो के परे इस स्वर्थपरक प्रचलन को समाप्त किया जाना चाहिये।
वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा है कि अधिकांश सांसदों को अपना उपचार करवाने के लिये सरकारी खर्च पर विदेश जाने का अवसर होता है । जिसका वे भरपूर उपयोग भी करते हैं। उपचार करने विदेश जाने का विरोध नहीं है किन्तु इसके लिये सरकारी धन के स्थान पर अपने पैसे का उपयोग किया जाना ही तय होना चाहिये।
श्री गोयल ने बिजली का बिल, पानी का बिल तथा फोन का बिल आदि सामान्य नागरिकों के लिये नि र्धारित दरों से कही कम दरों और दूसरी रियायतों पर आधारित होता है। यह व्यवस्था समाप्त होनी चाहिये। उन्होंने कहा है कि आपराधिक तत्वों के संसद के सदनों में पहुंचने से रोकने का कानून का क्रियान्वयन एक अन्य चुनौतीपूर्ण दायित्व है ,जिसका निर्वाहन सही प्रकार से नहीं हो पा रहा है । अपराधिक तत्वों को चुनाव में भाग लेने से रोकना एक सामायिक जरूरत और लोकतंत्र के हित है , इसके लिये पूरी गंभीरता से प्रयास होने चाहिये।अपराध करने वालों के प्रति उठाये जाने वाले कदमों के दायरे में उन लोगों को भी लाया जाना चाहिये जिनका वर्तमान ही नहीं पुराना अपराधिक गतविधियों में संलिप्तता का इतिहास हो।
सांसदों को मिलने वाली रियायतें और क्षतिपूर्ति अनुदान जब तक वापस नहीं लिये जाते तब तक आम जनता से सब्सिडियां वापस करने की अपेक्षा करना गलत होगा। पार्लियामेंट कैंटीन के खाने की सब्सिडाइजड दरों सहित अन्य रियायतें जब तक जारी रखीजाती हैं तब तक एल पी जी गैस कनैक्शन की सब्सिडी आम नागरिकों से छोडने की अपेक्षा न तो नैतिक है और नहीं तर्कसंगत ही।
श्री गोयल ने मुफत या रियायत के अधार पर हवाई जहाज ओर रेल यात्रायें करना पर रोक की भी अपेक्षा की है। सांसादों को मिलने वाली ये रियायतें परोक्ष रूप से आम नागरिकों की जेब पर ही पडती है।
श्री गोयाल ने कहा है कि उनकी याचिका के अधिकांश बिन्दुओं से व्यापक सहमति होना ही पर्याप्त नहीं है,उनकी अपेक्षा है कि इस सहमति को और व्यापक जनसमर्थन मिले। उन्होंने याचिका के विवरण से सहमत जनों से अपेक्षा की है कि अगर 20व्यक्तियों तक और पहुंचाये तो तीन दिन के भी भीतर उपरोक्त मांगे और संसदीय व्यवस्था में सुधार का उनका यह संदेश देश भर में अधिकांश व्यक्तियों तक पहुंच सके ।(आलेख: असलम सलीमी)