जैट एयरबेज: उडान की आस फिलहाल बेअसर |
जैट एयरलाइंस के कर्मचारियों के कर्मचारियों के नौकरी तलाश प्रयासों के साथ ही भारतीय नागरिक उड्डयन क्षेत्र में अभूतपूर्व मंदी का दौर शुरू हो गया है। किग फिशर के ग्राऊंड डाउन हो जाने के बाद से सिविल एवियेशन सैक्टर में व्याप्त अनिश्चित्ता का दौर थम नहीं सका है ,जैट एयरबेज के ग्राऊंड डाउन हो जाने के साथ ही मौजूदा हालात अत्यंत खराब हो गये हैं।
दरअसल एवियेशन सैक्टर में भले ही ओपिन एयरपॉलिसी के बाद निजिक्षेत्र का निवेश बढा हो किन्तु नीतियांें और फ्लाइट्स की वाइविलटी के लिये प्राईवेट एयरलाइंसों को भारत सरकार की नागरिक
उड्डयन नीति और दिशा र्निदेशों पर ही नि र्भर रहना होता है। पिछले तीन साल से भारत सरकार की नीतियों के फलस्वरूप वायुयान संचालक कंपनियों में गैर जरूरी प्रतिस्पर्धा शुरू हो गयी । रीजनल एयर कनैक्टिविटी के नाम पर छोटी एयरलाइंसों और सीमित दूरी के लिये फ्लाइट संचालकों को जहां उडान खर्च के घाटे को कम करने की कयी योजनाये शुरू की गयीं वहीं स्थापित एयरलाइंसों को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष करों के बोझ से लाद दिया गया। जी एस टी की दरे और तेल की कीमत में बढोत्तरी के साथ ही एयरपोर्ट अथार्टी आफ इंडिया के द्वारा अपने एयरुील्ड यूजरों के लिये बढायी गयी दरों के कारण एयरलाइंसों का मुनाफे में चलना लगभग नामुमकिन हो गया।
बनते हालातों को दृष्टिगत सरकारी और निजिक्षेत्र के निवेशकों ने भी पिछले दो सालों से अपने हाथ पीछ े खीच लिये हैं ।वर्तमान मे हालात ये हैं कि नये निवेश तो दूर ,वूर्व के निवेशों को वापस निकालने के लिये अघोषित जोड तोड जोरो से चल रहा है। एयरपोर्ट अथार्टी आफ इंडिया के अलावा राज्य सरकारों तक को अपने एविऐशन प्राजैक्टों के लिये निजि क्षेत्र के निवेशक ढूंढे नहीं मिल रहे हैं।
जानकार सूत्रों के अनुसार वर्तमान में जहां चार्टर प्लेन आप्रेट कंपनियों की मुश्किलें बढने वाली हैं, वहीं देश के अधिकांश फ्लाइंग क्लब ट्रनिंग लेने वालों के अभाव में बन्द होने की स्थिति में पहुंच जायेंगे। जून के बाद भारत सरकार हो सकता है