---कविवर अजय गुप्ता ' रंगीला' मानतें हैं कि भाजपा में वर्करों के प्रति दिशाहीन- उदासीनता का दौर
संवेदना शून्य , दिशाहीनों की सफाई के बाद ही 'भाजपा' खरी उतर सकेगी जनअपेक्षओं पर : अजय रंगीला |
आगरा: भारतीय जनता पार्टी की अपनी कार्यशैली को लेकर एक विशिष्ठ पहचान रही है, जिसके बूते पर सत्ता से बाहर रहने पर भी संगठन की ताकत और चुनावी राजनीति में सक्रियता का ग्राफ लगातार बढा है और सत्ता के शीर्ष के मुकाम पर पहंचने का लक्ष्य हांसिल कर सकी । किन्तु मौजूदा दौर परंपराओं से थोडा भटका हुआ है। पार्टी के नेताओं ,खास कर जनप्रतिनिधियों का पार्टीजनों से संवाद तो टूटा हुआ है ही साथ ही ' नेता -कार्यकर्त्ता ' के बीच की बढती दूरी के प्रति संवेदनशून्यता की स्थिति बन गयी
है। सबसे ज्यादा निराशा साहित्य व कलाक्षेत्र से संबधित उन बुद्धजीवियों को है, जो कि 2014 मे हुए सतता मे बदलाव के बाद से बौद्धिक वर्ग केप्रति स्थितियों में सुधार को लेकर काफी आशावान थे।
पार्टी के काम काज की शैली को लेकर अपने को उपेक्षित महसूस करने वालों की संख्या काफी बडी है किन्तु इस पर खुलकर बोलने की हिम्मत जुटा आगरा के श्री अजय गुप्ता रंगीला जेसे कम ही हैं। कंप्यूटर औा कम्यूनिकेशन गैजेट्स क्षेत्र के आगरा के स्थापित ट्रेडर श्री अजय गुप्ता साहित्य क्षेत्र में खास दखल रखते हैं। अपने नाम के साथ 'रंगीला' तखल्लुस लगाते हैं।
चुनावी अधिसूचना के जारी होने के कहीं पहले ही उन्हो ने चौकीदार को समर्पित अपनी रचनाधर्मिता का परिचय देते हुए 'चोरों की बारात निकली है, दिल्ली द्वारे....., मिलकर लूटेंगे सारे ' , हां मैं चौकीदार हूं', 'सत्यमेव जयते', ' मोदी जी को लाना है' , आदि सरस पाठन के उपयुक्त कवितायें रच डाली।
इनको मुद्रित करवा के जहां जहां संभव हैं,बंटवाया । इसके साथ ही ये रचनायें पार्टी के स्टार प्रचारकों के चुनावी मंचों सं बांचे जाने बांचे जाने के लक्ष्य को प्रप्त करन के लिये पार्टी के पचास शीर्ष नेताओं को भी स्पीड पोस्ट एन्वलप से प्रषित कीं। र्टिग रिकार्ड से डॉक विभाग ने सभी सटीकता के साथ बांट भी दीं । लेकिन इन पचास में से उडनचास ने तो प्रेषित कीं कविताओं को लेकर कोयी रिस्पांस ही नहीं दिया जबकि पचासवें ने यानि पार्टी के प्रदेशा के महामंत्री संगठन सुनील कुमार बंसल न जो पत्रोत्तर प्रषित किया वह अपने आप में सिर चकरा देने वाला है। 2अप्रैल को श्री बंसल के द्वारा पत्रोतर शैली के इस पत्र में श्री रंगीला को सूचित किया है कि उनके पत्र को संज्ञान में ले लिया गया है और उस पर विचार कर यथेचित कार्रवाही की जायेगी। श्री रंगीला ने कहा कि यह पत्र ऐा हैजैसेकि उन्होंने कोयी समस्याश शिकायत प्रदेश महामंत्री को प्रषित की थी और अब वह उस पर कार्रवाही करवायेंगे। जबकि श्री रंगीला ने तो उन्हें मज कवितायें प्रषित की थी,किसी भी किस्म की कार्रवाही की कोयी अपेक्षा की ही नहीं थी।
श्री रंगीला का कहना है कि आगरा में चुनाव का मतदान होने तक तो पार्टी हित में खामोश रहना लाजमी था। किन्तु अब वह उदासीनता और गैरजिम्मेदारा शैली से पार्टी को निजात दिलवाना जरूरी मानते हैं और इसके लिये जो भी जरूरी समझेंगे करेंगे।
अशाक जैन का अनुभव भी अच्छा नहीं
राष्ट्रवाद को समर्पित ' तिरंगा ' की भी सुध नहीं ली दिल्ली के सत्ताधीशों ने । |
इसी से मिलता जुलता अनुभव जिला अधिकारी कंपाऊड के ठीक पीछे स्थित मोहनपुरा के रहने वाले श्री अशोक जैन का है।लघु एवं विज्ञापन फिल्मों के लिये एक समय वालीवुड में अपनी खास पहचान रखने श्री जैन ने भारत में लोकतंत्र: 2014 तक का सफर विषयक फिल्म 'तिरंगा ' का निर्देशन और निर्माण किया था। पी एम नरेन्द्र मोदी के समक्ष इसे प्रर्दशित करने की बात थी किन्तु इसके लिये खुद और मध्यस्थों के माध्यमसे भी जो प्रयास किये आधे अधूरे ही रहे। कलाक्षेत्र का 'साधक ' सत्ताधीशों के कारनामों पर एक डेढ इंच की मुस्कान के कटाक्ष के अलावा और क्या कर सकता है।
खामोश प्रवृत्ति के कला धनी श्री जैन इतना जरूर कहते हैं कि 'पी एम ओ' की कार्यशैली में सुधार की जरूरत है अगर यह हो सके तो मेरे जैसे तमाम जनता के छोर पर खडे नागरिको को किसी मिडिलमैन' की जस्रत नहीं रह जायेगी। अपने अनुभव से इतना कहने में उन्हें कोयी संकोच नहीं है कि जनता के छोर पर पी एम ओ पूरी वर्तमान में तरह से असर हीन है।
फिहाल श्री जैन के प्रोडैक्शन 'तरंगा' के आगरा और आगरा के बाहर कई इंट्रैक्टिव सैशन हो चुके है और इसका च्री आफीशियल रिलीज कर्टेन लैजर यू ट्यूब पर भी अपलोड है जिसके व्यूअरों की संख्या निरंतर बढ रही है। भारत के अलावा प्रवासियों की बहुलता वाले देशों में जिसे काफी पसंद किया जा रहा है।