17 वीं लोकसभा में अखरेगी सहृदयी सामाजिक प्रतिबद्धों की कमी
आगरा: लोकसभा चुनाव संपन्न हो गया है और परिणाम आने को हैं । लेकिन इस बार यानि कि, 17वीं लोकसभा निर्वाचकों को अपने दायित्व निर्वाहन से कोयी बडी उम्मीद नहीं है। इसका कारण देश की संसदीय राजनीति के गठबन्धन यूनाइटिड प्रौग्रेसिव एलाइंस (यू पी ए) और नेशनल डैमोक्रेटिक एलाइंस (एन डी ए ) के घटक दलों के बीच ही ' राष्ट्रीय हित बनाम केवल दलीय हित ' सिमिट कर ही रह जानी है। इन गठबन्धनों के दलों के द्वारा चुनाव जीतने के लिये जो तौर तरीके अपनाये गये हैं और न्यूनतम साझा कार्यक्रम के समरूप अपनी अपनी जो घोषणायें की गयी हैं , उनमें से ज्यादातर जन सामान्य की दृष्टि में न तो व्यवहारिक ही है और न हीं नेक नियत से किसी ठोस सर्वेक्षण पर आधारित हैं।
यही नहीं मूर्तियों का तोडना, पब्लिक टैक्स आधारित राजकोष को खैरात सरीखा मानकर उसके खर्च करने के प्राविधान के प्रस्ताव,औद्योगिक और विदेश व्यापार नीति में जरूरत के मुताबिक परिवर्तन आदि की जरूरत को नकार देना आदि ऐसे मुद्दे हैं जिन्हे अनदेखा करना राष्ट्र हित में कदापि नहीं माना जा सकता है।
मतदाता का परपक्व होना भी अहम :श्री आर के सचदेवा |
मतदान पर्व का शोर थमजाने के बाद देशभर में बने हालातों पर ह्यूमन ड्यूटीज फाऊंडेशन ( एच डी एफ) ने गंभीर चिंता जतायी है। संगठन के चेयरमैन आर के सचदेवा ने कहा है कि देश में मतदाताओं की परिपक्वता पर ही लोकतंत्र की कामयाबी आधारित है। केवल बोट देने मतदान केन्द्रो पर पहुंच जाने तक ही मतदाताओं को अपने आप को सीमित नहीं रखना होगा ,अपने को सीमित रखने की परंपरा से उबरना होगा।
एक जानकारी में श्री सचदेवा ने कहा कि मतदाताओं को अब न केवल राजनैतिक दलों पर ही नजर रखनी होगी अपितु 'ओपीनियन मेकर' यानि मीडिया पर भी गहनता के साथ नजर रखनी होगी।
'स्काईलैबों' नुमा सरकारी उदारताओं की घोषणायें :
श्री राजीव गुप्ता |
रियायत,कर्ज माफी और अनुदानों की 'स्काई लैबें ' तो राजनीतिज्ञ खूब उडा रहे हैं किन्तु जनता के किस वर्ग पर ये गिरेंगी और इनके कारण कितना नुक्सान होगा यह किसी भी प्रमुख राजनैतिक दल के द्वारा अपने चुनावी अभियान में जनता जनार्दन के समक्ष रखने का सहास
नही दिखाया है।
श्रम शक्ति के साथ अभूतपूर्व मजाके :
असंगठित श्रम शक्ति पर काम करने वाले अभिनय प्रसाद एडवोकेट ने कहा है कि चुनाव में भाग लेने वाले दलोंश्री अभिनय प्रसाद |
समझ से परे है पर्यावरण के मुद.दे पर खामोशी :
श्री श्रवण कुमार |
सोशल एक्टिविस्ट श्रवण कुमार का कहना है कि राजनैतिक दल
पर्यावरण संरक्षण और अबाध विकास का खाका अपने घोषणा पत्रों में शमिल नहीं कर सके।
माइनार्टीज के केवल कसीदे न पढें :
उर्दू अदब से ताल्लुकात रखने वाले टी एन खान का कहना है कि 'माईनार्टी द्ध का जाप करते रहने वाले यह स्प)ट नहीं कर सके हैं कि सिख दंगो के मुकदमों और सच्चर कमीशन की रिपोर्ट की सिफारिशों को लेकर अब तक चलती रही राजनीति से आगे भी कुछ ऐसा है, जिसके आधार परअल्पसंख्याक राजनैतिक हाशिये पर रखे जाने की स्थिति से उबर सकें।श्री सुनीत गोस्वामी |
भौतिक सुख-सुविधाओं को पाने की प्रतिस्पर्धा थी :
अध्यात्मिक साहित्य के प्रख्यात लेखक श्री सुनीत गोस्वामी इस बार के चुनाव को भौतिकवादी सुख सुविधाओं को जुटाने की एक ऐसी प्रतिस्पर्धा मानते हैं जिसमें केवल राजनैतिक दल ही मुख्य प्रतिद्वन्दी की भूमिका में होते हैं।जो भी हो आने वला समय बडे बदलावों वाला होगा किन्तु इनमें से अधिकांश आम जनता के हितों से परे दलों के हित चितको के ही माफिक होगे। कोयी आश्चर्य नहीं कि कार्पोरेट जगत की मल्टीनेशनल और भारतीय कंपनियां राजनीति में निवेश की पर्देदारी की मौजूदा व्यवस्था के चलते राजनैतिक दलों को अपनी 'पॉकिट पार्टी' बनाने के जोडतोड में ी नहीं जुट जायें।