-- 'हिचकी' अमी स्मृति अंक बहुत कुछ सिमेटे है अपने आप में
हिचकी का 'अमी' स्मृति अंक |
सहज ही नहीं बन गये थे पत्रकार
अमी जी एक दिन में ही पत्रकार नहीं बन गये थे सामाजिक सरोकारों को समर्पित सोच और राजनैतिक कार्यकर्त्ता के रूप में रहे अनुभव, उनकी पत्रिकारिता में हमेशा बने रहे। दैनिक जागरण में कई सालों तक मैंरा उनका रोज का साथ रहा। तब शहरभर की गतविधियों के कर्त्ताधरताओं में से अधिकांश का पडाव रात्रि में अखबार का दफ्तर हुआ
करता था।रात्रि में घर को रवाना होने से पूर्व आपस में खूब चर्चा होती ।अपने अनुभव के आधार पर मैं इत्मीनान से कह सकता हूं कि पत्रकार से ज्यादा अच्छी तरह कोयी नहीं जानता कि शहर का विलेन कौन है और हितैषी कौन।
यथार्तवादी चितन
प्रबंधन में कार्पोरेटीकरण की प्रक्रिया का प्रिट या इलैक्ट्रानिक मीडिया क्षेत्र में पनपना सामान्य रूप से ही लिया जाता रहा किन्तु जब जनसंसाधनों के दोहन की लिप्सा को पूरा करने के लिये स्थानीय स्तार पर भी मीडिया और उससे जुडे लागों को माध्यम बनाया जाने लगा तब भावी दुषपरिणामों का अहसास होने लगा।अमी को जो चल रहा था उसकी खूब जानकारियां थीं। उनकी मौलिक चिता थी कि वैचारिक राजनीतिज्ञ और दल भी अगर मीडिया की तरह कार्पोरेट जमघट में उलझ गये तब आम आदमियों की दुश्वारयों बढ जायेंगी। नमन ने अपने लेख में मथुरा में व्यूरो इंचार्ज के रूप में रहे कार्यकाल का उल्लेख करते हुए बताने का प्रयास किया है कि कितना चुनौतीपूर्ण बनचुका थी पत्रकार की भूमिका।
पहला अंक
'हिचकी ' का प्रकाशन प्रारंभ होने संबधी समाचार । |
पहला एडीशन लेकर वह खुद मुझ से मिलने आये थे,हालांकि डिस्पैच से वह पहले ही प्राप्त हो चुका था। आई ई एन एस की सदयता, ए बी सी , ए एच व्हीलर के डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम , आर एन आई आदि से संबधित उन सभी मुद्दो पर बात होती रही जो उनके प्रकाशन के लिये महत्वपूर्ण थे। टैक्नेलाजी ने प्रकाशन के काम को जरूर आसान बना दिया है अन्यथा बहुत खर्चीला हो गया है अब पब्लिकेशन का काम । स्मृति अंक ने सबकुछ ताजा कर दिया एक बार। नमन ने सही ही कहा है कि ' This , dear Reader ,were the flame of the phoenix lighting new lamps .'हम सभी को उम्मीद है कि साहित्य जगत को प्रकाशित नयी लौ अधिक प्रकाशमना होगी ।
दादा जी को समर्पित
अमी की कार्य करने की ऊर्जा के कई स्त्रोत होंगे किन्तु राधा स्वामी मत के धर्मगुरू आ. दादाजी महाराज डा अगम प्रसाद माथुर उनके लिये हमेशा मुख्य आदर्श और प्रेरक रहे।राधास्वामी मत से संबधित एक से बढ कर एक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। इनमें ही ' Radhasomai Mat Parmpara aur Dadaji Maharaj ' भी एक है किन्तु यह थोडी फर्क है अन्य से। यह रिसर्च वर्क होते हुए भी उन आम लोगों के लिये भी सहज में सटीक जानकारियों उलब्ध करवाये जाने का माध्यम है जो कि राधास्वामी मत और हुजूरी भवन की संस्कृति को गहनता व सटीकता से जानना चाहते हैं लेकिन अध्यात्म और धर्मों के बारे में सीमित रुचि ही रखते हैं।शायद यही कारण है जिन जिन लाइब्रेरियों में भी यह पहुंची है लगातार 'इश्यू' होती रहती है।