--पी एम जेनरिक दबाखाना योजना से लाभ लेना और सहज किया जाये: मेहरा
आगरा: डाक्टरों को दबाओं के पर्चे में दबाओं के नाम सहित उनमें मिले साल्टों के नामों का भी उल्लेख करना अनिवार्य बनाया जाये।इसके लिये अधिनियम लाकर क्रियान्वयन को कानून बनाये जायें जिससे कि बीमार या उसके परिचारक किसी कंपनी विशेष या ब्रंड विशेष की दबा की ही बाजार में उपलब्धता पर निर्भर होने की स्थति से उबर सकें। यह कहना है छावनी विधान सभा के पूर्व विधायक एवं उ प्र भाजपा के पूर्व संगठन मंत्री श्री केशो मेंहरा का।
श्री मेहरा ने भारत सरकार को दबाओं के सम्बन्ध में विस्तार से पत्र लिखकर उनके मूल्य और उपलब्धता की मोजूदा स्थिति पर चिता जतायी है तथा कहा है कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा 'जेनरिक मैडीसन ' योजना का नागरिकों के मिल रहा लाभ व्यापक रूप से
संभव करवाने के लिये कानूनी व्यवस्था जरूरी है । इससे जेनरिक दबाओं को खरीदने में बने हुए संकोचों समाप्त हो जायेंगे।जेनरिक दबा स्टोर
श्री मेहरा ने भारत सरकार को लिखे पत्र में कहा है ब्रांडेड दबाये लिखने का चलन पूर्ववत जारी है, प्राईवेट प्रैक्टिशनर ही नहीं सरकारी सेवारत भी अधिकांशत: ब्रांडेड दबाये ही लिख रहे हैं। भाजपा नेता ने कहा है कि जो ब्रांडेड दबाये खरीदने में सक्षम हैं वे इन्हें यथावत खरीदते रह सकते रह सकते हैं किन्तु सीमित आर्थिक साधनों वाले जो मुश्किल से ही इलाज व दबाओं के लिये धन जुटापाते हैं,वह जेनरिक स्टोरों से कहीं कम दामों पर दबाये खरीद सकेंगे । उन्होंने कहा कि सर्वविदित है कि ब्रांडेड दबाओं की तुलना में जेनरिक स्टोरों पर उपलब्ध दबायें कहीं सस्ती होती हैं। लेकिन डाक्टर के पर्चे में इन्के न लिखे होने से मरीज और उनके परिचारक इन्हे खरीदने में संकोच की स्थिति में होते हैं। कानून बनजाने पर जेनरिक दबाओं को डाक्टरों के पर्चे पर भी स्वत: ही स्थान मिलने लगेगा।दबाओं की कीमत
ब्राडेड दबा लिखने के स्थान पर केवल साल्ट का नाम लिखने के लिये अधिनियम बनाने मात्र से ही सामान्य जन को राहत देने लक्ष्य पूरा नहीं होगा,इनकी आधिकारिक कीमत भी जनजानकारी में होनी चाहिये। यह तभी संभव हो सकेगा जबकि दबाओं को खरीदने वालो को गैर जरूरी मुनाफे से बचाने के लिये ब्रांडेड एवं जेनरिक दबाओं की कीमत निर्धारित किये जाने के सम्बन्ध में अगर नीति है तो उसका सख्ती से अनुपालन सुनिश्चित करवाया जाये अन्य स्थति में अगर जरूरी हो तो दबाओं के दामों के निर्धारण को भी कानून बनाया जाये। श्री मेहरा के अनुसार एम आर पी (अधिकतम विक्रय मूल्य) के रूप में मूल्यांकित करने की जो मौजूदा व्यवस्था हैृवह बबहुत व्यवहारिक नहीं है । दबाओं का मूल्य निर्धारण की पारदर्शिता पूर्ण प्रक्रिया होनी चाहिये।एक सीमा से अधिक मुनाफा कमाने का हक किसी को भी नहीं है। दबाओं का खदुरा मूल्य के साथ ही थोक मूल्य भी दबाओं पाऊचों,पैकिटो,पर आंकित किया जाना अनिवार्य किया जाये।
इंग्लैंड में है कानून
स्वास्थ्य एवं चिकित्सा क्षेत्र में अग्रणी रहने वाले ग्रेट ब्रिटेन में डाक्टरों को कानून केवल साल्ट (जेनरिक दबा का नाम) का नाम ही दबा के पर्चे पर लिखना होता है।जिसके परिणाम स्वरूप दबाओं की विश्वसनियता तथा मरीजों की संतुष्टि वहां अन्य कॉमनवैल्थ देशों की तुलना में कही अधिक है।उन्होंने कहा कि म प्र में मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने ब्रांडेडे दबाओं के साथ ही साल्ट का नाम लिखने की व्यवस्था का प्रयास किया था, किन्तु कानून की बाध्यता न होने से इस प्रयास का सीमित ही असर हुआ।
सत्यमेव जयते
श्री मेहरा ने अपनी बात को बल देने के लिये फिल्म अभिनेता आमिर खान के बहुचर्चित कार्यक्रम 'सत्य मेव जयते'का उल्लेख करते हुए इसके एक शो में देश की जनता ने देखा व जाना कि उसे इलाज के लिये किस प्रकार से 'जेनरिक 'दबाओं से कहीं अधिक कीमत पर ब्रांडेड दबाये खरीदने को मजबूर होना पडता है। जबकि दोनों का साल्ट एक ही होता है।
श्री मेहरा ने कहा है कि जेनरिक रूप में केवल 36रुपये में मिलने वाला प्रोटीन पाऊडर ब्रांडेड होते ही 250 रु से 600 रुपये का हो जाता है। एपेडरइजर सीरप की कीमत केवल 15 रूपय है,जबकि ब्रांडेड सीरप की कीमत 150रुपये है।
तत्कालिक अपेक्षित कदम
श्री मेहरा ने कहा कि प्रत्येक डाक्टर अगर ब्रांडेड दबा का नाम लिखता है तो जेनरिक दबा (साल्ट का नाम) जरूर लिखे । इसके साथ ही 'जेनरिक' एवं 'ब्रांडेड' दबाओं की कीमतों को भी मंत्रालय के द्वारा तत्काल प्रभाव से निर्धारित किया जाये ।जिससे देश में सभी को विशेषकर गरीब और मध्यम वर्ग को इसका तत्काल लाभ मिलसके।
श्री मेहरा ने रासायन एवं उर्वरक मंत्राय के मंत्री श्री डी वी सदानंद गोडा को 31 मई 2021 को यह पत्र लिखा है तथा इसकी प्रति प्रधानमंत्री भारत, भाजपा के राष्ट्री अध्यक्ष जे पी नड्डा तथा भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) को भी प्रेषित की है।
श्री मेहरा ने छावनी क्षेत्र के पूर्व विधायक आगरा छावनी और पूर्व प्रदेश मंत्री संगठन के रूप में इस पत्र को लिखा है ।
स्मृतियां जो अब ज्यादा पुरानी नहीं हुईं
जेनरिक दबाओं के संदर्भ में साल्ट का नाम लिखने की मांग भले ही मौजूदा दौर में नयी लगे किन्तु तीस साल पहले तक आगरा ही नहीं प्रदेश के अधिकांश जनपदों में डाक्टरों की क्लीनिक को दबाखाना कहने का भी प्रचलन था।यहां नाम के अनुरूप ही डाक्टरों से चेकअप करवाने के बाद दबाओं को देने का इंतजाम रहता था। एक कंपाऊंडर , डाक्टर सहाब के पर्चे के अनुसार साल्ट मिक्स कर 'दैन ऐंड दियर' अंदाज में साल्टों को मिक्स कर पुडिया बांधा देता था, इसी प्रकार सीरप आदि मिक्स कर शीशियों में भरकर दे देता था। कितनी खुराक लेनी है इसकी जानकारी देने के लिये कागज चिप्पियां भी चिपका देता था। ये कितनी प्रभावी साबित होती थीं ,इसका आधिकारिक रिकार्ड तो नहीं है किन्तु खांसी,जुखाम, कब्ज ,दस्त आदि के रोकने में बीते जमाने की इन मौहल्ला क्लीनिकों को लेकर आम नागरिको का अनुभव अच्छा ही रहता आया था।