– सार्क देशों में,अफगानिस्तान में अत्यंत कष्टकारी हालात
केन्दीय मंत्री प्रो.एस पी सिंह एवं उ.शिक्षा मंत्री योगेन्द उपाध्याय ने पत्रकारों को किया संबोधित।फोटो:असलम सलीमी |
उन्होने कहाकि प्रतिस्पर्धा और टीआरपी के लोभ में कुछ समाचार आधे-अधूरे या तथ्यहीन प्रसारित और प्रकाशित कर दिए जाते हैं, जिससे समाज पर उसका गलत असर पड़ता है। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार गलत पत्रकारिता
एनयूजे के उपाध्यक्ष विवेक जैन के साथ सार्क देशों 'मीडिया ऐंक्लेव -2023' में भाग लेने आये पत्रकार।फोटो:असलम सलीमी |
प्रदेश के उच्च शिक्षा राज्यमंत्री योगेंद्र उपाध्याय ने कहा कि सत्ता और पत्रकार जब समाज के लिए सोचते हैं, तभी समाधान निकलता है। पत्रकार ही जनता को जागरूक करते हैं। पत्रकारिता की जागरूकता का असर हमने आपातकाल में देखा था। जब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोक लगा दी थी तब समाचार पत्रों ने भी आवाज बुलंद करके उसका विरोध किया था। परिणाम स्वरूप तत्कालीन सत्ता को सिमटना पड़ा था। पत्रकार ही यदि अच्छे मन से काम करें तो वे ही समाज, प्रदेश और देश में परिवर्तन ला सकते हैं।
सार्क फोरम की चिंता
सार्क जर्नलिस्ट फोरम, काठमांडू-नेपाल के अध्यक्ष राजू लामा ने कहा कि भारत एक ऐसा देश है, जो प्रजातंत्र की जननी है। नेपाल और बांग्लादेश में भी प्रजातंत्र भारत से ही आया है। भारत की पत्रकारिता से भी विश्व के कई देश प्रभावित हैं। प्रेरणा लेते हैं, इससे हमें शिक्षा लेनी चाहिए। साउथ एशिया के पत्रकारों को चिंतन करना चाहिए। अफगानिस्तान में पत्रकारों को काफी संकट का सामना करना पड़ सकता है। वहां आज भी टीवी पर महिला पत्रकार बुर्के में खबरें पढ़ती हैं। जबकि भारत में पत्रकारों ने लोकतंत्र की रक्षा के लिए हमेशा अग्रिम पंक्ति में आकर लड़ाई लड़ी है।
पत्रकारों को एकजुट होना चाहिये
मुख्य वक्ता अमर उजाला, नई दिल्ली के सलाहकार संपादक विनोद अग्निहोत्री ने सार्क संगठन की मजबूती के परिप्रेक्ष्य में आगरा में हुई भारत-पाक शिखर वार्ता की याद को ताजा करते हुए कहा कि यदि वह वार्ता सफल हो जाती तो अभी तक भारत और पाकिस्तान का नक्शा ही बदल गया होता। उन्होंने कहा कि आज पत्रकारों को एकजुट होना चाहिए। यदि किसी शहर, प्रदेश या देश में किसी पत्रकार के साथ कुछ होता है तो उसकी आवाज बुलंद सभी को करनी चाहिए।
प्रमुख वक्ता दिल्ली से आए वरिष्ठ सम्पादक अरुण त्रिपाठी ने पत्रकार और पत्रकारिता के संकट पर बोलते हुए कहा कि हर तरह के समाचार भी चाहिए और सुरक्षा भी नहीं मिलेगी, अतः नैतिकता ही पत्रकार का कवच है। उसी को अपनाएं।उन्होंने विख्यात पत्रकार पराड़कर ने अमर शहीद राजगुरु को पिस्तौल से निशाना लगाना सिखाया था, लेकिन पराड़कर जी ने कभी पिस्तौल का उपयोग नहीं किया।
देहात के पत्रकारों के लिये भी सोचें:उपजा
उपजा के प्रदेश अध्यक्ष शिव मनोहर पांडे का कहना था कि देहात के पत्रकारों पर कोई ध्यान नहीं देता। उनकी विषम परिस्थितियों पर भी सभी को संज्ञान लेना चाहिए, जिन्हे न उचित पारिश्रमिक संस्थान से मिलता है न समाज से उचित सम्मान। मीडिया पर अंकुश लगाया जा रहा है, पत्रकार औरों की पीड़ा तो लिख सकता है, अपनी नहीं।