नौटंकी पारम्परिक थियेटर अब लुप्त सा हो गया है। नृत्य, संगीत, कहानी, हास्य, संवाद, नाटक और बुद्धि का मिश्रण करने वाले इस करामाती ऑपरेटिव थियेटर की शुरुआत उत्तर प्रदेश के हाथरस शहर से हुई थी । 1910 के दशक तक लखनऊ और कानपूर नौटंकी के लिए महत्वपूर्ण स्थान बनाया। इन दोनों शहरों ने अपने विशिष्ट दर्शकों के लिए एक विशिष्ट शैली विकसित की थी। सबसे अधिक लोकप्रियता पाने वाली नौटंकियों में राजा हरिश्चंद्र, लैला मजनू, शिरीन फरहाद, श्रवण कुमार, हीर रांझा और बंसुरीवाली थे। पृथ्वीराज चौहान, अमर सिंह राठौर और रानी दुर्गावती जैसे ऐतिहासिक पात्रों पर आधारित नाटकों ने भी काफी ख्याति पाई । नौटंकियों के प्रदर्शन खुले मैदान में, एक अस्थायी मंच पर आयोजित किए जाते थे। इस कला को सभी आयु वर्ग के लोगों द्वारा पसंद किया जाता था ।1960 के दशक तक सिनेमा ने मनोरंजन का स्थान ले लिया। सिनेमा की बढ़ती लोकप्रियता के कारण 1990 के दशक तक,लगभग सभी मौजूदा नौटंकी कंपनियों के धीमे धीमे शटर डाउन होते चले गए ।नुक्कड़ नाटकों द्वारा इस कला को अभी भी जीवित प्रयास जा रहा है।